और वीरानों में जाने की बात का पता चलता है।[१] 'किष्किंधा काण्ड', गोलकुण्डा ( Golconde ) वाला भाग; रावण सीता को हरता और लंका ले जाता है।[२] 'सुन्दरकाण्ड' अर्थात् सुन्दर भाग; इस सर्ग का सम्बन्ध राम और उनकी पत्नी सीता के सौंदर्य और गुणों से है। 'लंकाकाण्ड', लंका वाला भाग[३] जहाँ रावण सीता को ले गया था। अंत में 'उत्तरकाण्ड' (भारत के) उत्तर का भाग; उसमें लंका से लौटने के बाद राम के कार्य हैं।
'रामायण' बाबू राम द्वारा, और लक्ष्मी नारायण की निगरानी में किदरपुर ( खिजरपुर)[४] से १८२८[५] में मुद्रित और १८३२ में कलकत्ते से घसीट (तेजी के साथ लिखे गए) नामरी अक्षरों में लीथो हुआ है। इसी प्रकार उसका एक संस्करण मिर्जापुर का है।[६] इस काव्य की अन्य हस्तलिखित प्रतियाँ अनेक पुस्तकालयों में पाई जाती हैं।[७] स्त्रिजरपुर से ही 'कबित रामायण'-कवित्त नामक छंद में रामायण शीर्षक के अंतर्गत उसका एक संक्षिप्त रूप प्रकाशित हुआ है।[८]
- ↑ यह
- ↑ आंशिक रूप में, फतहगढ़ से, १८६८ में प्रकाशित, १६ चौपेजो पृष्ठ।
- ↑ यह काव्य पृथक् रूप में आगरे से १८६७ में प्रकाशित हुआ है, ३६ पृष्ठ ।
- ↑ खि ( पैगम्बर अली Elie) का नगर
- ↑ चौपेजो बड़ी जिल्द । चौपेजो छोटी जिल्द का एक पहले का संस्करण है; यह अन्तिम अच्छी छपी है और उत्तम कागज़ पर है। मैंने उसको एक प्रति ईस्ट इंडिया हाउस ( ऑफिस ) में देखी हैं।
- ↑ 'जनरल कैटेलौग ऑव ऑरिएंटल वस' में, आगरे से प्रकाशित, कलकत्ते और बनारस के संस्करण भी बताए जाते हैं।
- ↑ ऐसा प्रतीत होता है कि इसका 'राम की कथा' अधिक हिन्दुस्तानी शीर्षक भी हैं। 'जनरल कैटलौग ऑव ओरिएंटल वर्क्स।'
- ↑ मेरा विचार है कि यह वही रचना है जिसका 'दोहावली' शीर्षक के अंतर्गत ६८