पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२५८

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तुलसीदास [१०३ कृत है। मैं इस पुस्तक के विषय के बारे नहीं जानता,जिसे मुहम्मद बख्श के हिन्दुस्तानी हस्तलिखित ग्रंथों के सूचीपन्न में तुलसी-कृत कहा गया है। पिछली बातों के साथ-साथ मैं यह भी जोड़ देना चाहता हूं कि, जैसा कि‘भक्तसाल’से लिए गए अंश में बताया गया है,वे संस्कृत ‘रामायण’ के रचयिता वाल्मीकि के अवतार समझे जाते थे।उनके पिता का नाम आत्मा राम पन्त (Pant) था। बारह वर्ष की अवस्था में ब्रह्मचारी हो गए थे,उनकी स्त्री का नाम देवी ममता था; वे अत्यन्त पवित्र थीं,और उन्हीं ने उन्हें राम और सीता की भक्ति की ओर प्रेरित किया साथ ही वैराग्य धारण करने का निश्चय उत्पन्न किया।

तुलसी-कृत रामायाण भारतवर्ष के सबसे अधिक पढ़े जानेवाले और सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथों में से है,यद्यपि सामान्यतःलोग उसकी सूक्ष्मता का कारण और उसके प्राचीन रूपों को कमसमझते हैं। उसे प्रायः 'तुलसी ग्रंथ'―तुलसी की पुस्तक― कहते हैं;और इस शीर्षक के अंतर्गत वह मेरठ से १८६४ में प्रकाशित हुई है। राम गोलन’ने ‘तुलसी शब्दार्थ प्रकाश’ शीर्षक के अंतर्गत उसकी एक टीका प्रकाशित की है दुर्भाग्यवश,भारतीय टीकाएँ उनगृन्थों की अपेक्षा कठिन होती हैं जिन्हें वे स्पष्ट करना चाहती हैं।
अनेक स्थानों में,और पटना में ही,जहाँ तुलसी-दास की रचनाएँ अन्य स्थानों की अपेक्षा भलीभाँति समझी जाती हैं,प्रतिष्ठित व्यक्ति थोड़ा सा प्रसाद वितरण कर इन रचनाओं का साफ़-साफ़ पाठ सुनने के लिए इकट्ठे होतें हैं। प्रत्येक समुदाय में दस या बारह व्यक्तियों से अधिक नहीं होते जो कथा समझ सकते
१.तुलसी किरत'(फ़ारस लिपि से )-दुर्गा प्रसाद पर लेख देखिए।
२.इन पर लेख देखिए।