पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२६७

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११२ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास जितनी स्वेच्छा से कैथोलिकों के यज्ञ-विशेष में गया उतनी ही { स्वेच्छा से ) प्रोटेस्टेंट के धर्मोपदेशों और ब्रह्म सभा के, जिसकी उसने स्थापना की, दार्शनिक ( एवं ) धार्मिक समाज में ।। दूल्हा-राम के उत्तराधिकारी कुत्र-दास हुए ; वे १८२४ में गही पर बैठे और १८३१ में मृत्यु को प्राप्त हुए । कहा जाता है उन्होंने एक हजार शब्दों की रचना की; किन्तु वे उन्हें लिपि-बद्ध करने की अछा देने को राजी न हुए । नारायण दास उनके उत्तराधिकारी हुए और वे इस समय इस संप्रदाय के, जिसके सिद्धान्त की व्याख्यो कैप्टेन वेस्मकॉट ( Westmacott ) द्वारा कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के मुखपत्र के फ़रवरी, १८३५ के अंक में हुई है, चौथे गुरू हैं। देबीं-दास या देवी-दास | कवि चरित्र में उल्लिखित अत्यन्त धार्मिक हिन्दी लेखक हैं। निम्नलिखित रचनाओं के रचयिता हैं : १. 'बैंक (Vyenk) देश स्तोत्र'-विष्णु की प्रशंसा–एक सौ अठ भागों में ; २. ‘करुणामृत'-करुणा का अमृत-संत रचना ; ३. 'संत सालिका’--संतों की माला-भक्तमाल की तरह का शीर्षक, जिसका अर्थ भी वही है ; . ४. उक्ति युक्ति रस कौमुदी–बातचीत के रूपकों में रस की चाँदनी----बनारस के बाबू हरि चन्द्र की ‘कवि बचन सुधारे में प्रकाशित । १ हिन्दुस्तान में यह शब्द ‘मसनद' का समानार्थवाची हैं। ये दोनों शब्द एक बादशाह या गुरु आदि के सिंहासन की अर्थ प्रकट करते हैं। २ भा० ( सर्वोच्च ) देवों की इसि’, अर्थात् ‘दुर्गा का’ 3 इन घर लेख देखिए ।