पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२६९

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११४ ? हिंदुई साहित्य का इतिहास शिखा' और ‘अष्टयाम’२ हिन्दी ग्रंथों के रचयिता । दुर्भाग्यवश बार्ड ने न तो इन रचनाओं के विषय की ओर संकेत किया है और न उनके शीर्षकों का अर्थ ही बताया है। देवीदयाल केवल ‘देवी सुकृतदेवी द्वारा निर्मित शीर्षकशिव संप्रदाय संबंधी एक हिन्दी काव्य के रचयिता हैं। पाठ के साथ उर्दू में एक टीका भी है जिसमें कठिन शब्द समझाए गए हैं और कुल १३६ पृ० का ग्रंथ , लखनऊ में मुद्रित । धना’ या धन भगत अपनी साधु प्रवृत्ति द्वारा प्रसिद्ध एक हिन्दू और हिन्दी में भजनों के रचियता हैं ।’ अपने भक्त माल’ में नारायण दास का कहना है कि धना ध्यान में इतने लवलीन रहते थे कि एक दिन वे भोजन का ग्रास मत कर एक पत्थर निगल गए । उनकी मक्ति का फल देने के लिए, विष्णु ने, गायबैलों के रक्षक के रूप में, मानव रूप धारण किया । एक दिन इस देवता ने उनसे रामानन्द का शिष्य हो जाने के लिए कहा, और उसी समय पीछे से एक दिय बाणी सुनाई दी कि धना पहुंच गए और तुरंत उनके कान में पवित्र 1 नसशिखाइन शब्दों में से पहले का अर्थ है ‘नाखून, और बहू विशेषतः पैर के अँगूठे का; दूसरे शब्द से तात्पर्य है ‘बालों का जूताजिसे बहुत से भारतोय सिर के ऊपरी हिस्से पर उगने देते हैं । इन दोनों शवों का योग हिन्दुस्तानों में ’’ का अर्थ थारण कर लेता है, शब्द के अनुसार सिर से पैर तक’ । २ अष्ट यामदिन ( और रात ) को आठ बढ़ियाँ? 3 अ‘ ( 2-अनु० ) देवी ( दुर्गा ) के प्रति स्नेही' के भ० ‘सच्चा’ ( विशेषण ) ५ ‘मुन्त धना’

  • ‘एशियाटिक रिसर्च, जि० १७४० २३८