पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८

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[मूल के प्रथम संस्करण का समर्पण]
 
ग्रेट ब्रिटेन की सम्राज्ञी को


देवि,

यह नितान्त स्वाभाविक है कि मैं सम्राज्ञी से एक ऐसा ग्रन्थ समर्पित करने का सम्मान प्राप्त करने की प्रार्थना करूँ जिसका संबंध भारतवर्ष, आपके राजदण्ड के अंतर्गत आए हुए इस विस्तृत और सुन्दर देश, और जो इतना ख़ुशहाल कभी नहीं था जितना कि वह इँगलैंड के आश्रित होने पर है, के साहित्य के एक भाग से है। यह तथ्य सर्वमान्य है; और, इसके अतिरिक्त, आधुनिक हिन्दुस्तानी-लेखक इस का प्रमाण देते हैं : जिस ब्रिटिश शासन के अंतर्गत न तो लूट का भय है और न देशी सरकारों का अत्याचार है, उसका उनकी रचनाओं में यश-गान हुआ है।

हिन्दुस्तान के प्राचीन शासकों में, एक महिला ही थी जिसने अपने व्यक्तिगत गुणों के कारण ही सम्भवतः अत्यधिक ख्याति प्राप्त कर ली थी। कृपालु सम्राज्ञी की भाँति गुणों से विभूषित राजकुमारी के मंगल सिंहासनारूढ़ होने का समाचार सुनकर, देशवासियों को अपनी प्रिय सुल्ताना रज़िया को स्मरण करना पड़ा। वास्तव में, विक्टोरिया रानी में उन्होंने रज़िया का तारुण्य और उसके अलभ्य गुण फिर पाए हैं; और केवल यही बात उनका उस देश के साथ संबंध और भी दृढ़ बना सकती है जिसके उनका अधीन होना ईश्वरेच्छा थी।

मैं हूँ, अत्यधिक आदर सहित,
देवि,
सम्राज्ञी,
अत्यन्त तुच्छ और अत्यन्त आज्ञाकारी दास,

पेरिस, १५ अप्रैल, १८३९ गार्सां द दासी