पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८३

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(e १२८ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास हुए । परिपक अवस्था प्राप्त करने पर उन्होंने अपने गुरु, जो ऐसा प्रतीत होता है, उसे संस्कृत में लिख चुके थे, की इच्छानुसार भक्तमाल' की रचना की 1 इस रचना, जिसके शीर्षक का अर्थ है । 'भकों की माला', और जिसे संत चरित्र' भी कहते हैं, में प्रधाएँ हिन्दू, विशेषतः वैष्णव, संतों की जीवनियाँ हैं । उसकी रचना ब्दों में अत्यन्त कठिन हिन्दुई में हुई है। शाहजहाँ के राजत्व काल में नरायण दास ने उसका शोधन और परिवर्द्धन किया, और १७१३ में कृष्णदास ने टीका की । उसका एक अन्य सम्पादन प्रियादास द्वारा हुआ है । उसका रूपान्तर साधारण हिन्दुस्तानी में भी हुआ। है । श्री डब्ल्यूयूः प्राइस ने अपने हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सलेक्शन्स' ( हिन्दी और हिन्दुस्तानी संग्रह ) में जितने मूल से उतने ही टीका से रोचक उद्धरण दिए हैं । यह प्रन्थ स्वर्गीय श्री विल्सन को हिन्दू सम्प्रदायों पर अपने विद्वत्ता और महत्वपूर्ण कृति के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ । इस विद्या भारतीय विद्याविशारद के पास प्राचीन और आधुनिक संपादन की कई प्रतियाँ थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि ‘भक्तमाल’ का पूर्ण आनुवाद बँगला में हुआ है, जैसा कि मैं देखता हूं कि रेवरेंड जे० लौंग द्वारा उल्लि- खित इस अनुवाद के दो भाग हैं, जिनमें से पहला ३६२ पृष्ठों का और दूसरा १२४ पृष्ठों का है, जो कुल मिलाकर ५१६ पुष्ट होते हैं। अन्य भक्तों के अतिरिक्त इस प्रन्थ में प्रह्माद और हरिदास की जीवनियाँ भी हैं । दूसरे की प्रियादास द्वारा किए गए सम्पादान में पाई जाती है, किन्तु डब्ल्यू० प्राइस द्वारा दिए गए कृष्णदास वाले वृद्धरणों में वर्षा नहीं है । न्य था - - - - १ अग्रदात पर लेख देखिए २ इन पर लेख देखिए। 3 डेस्क्रिप्टिव लौंग व बेंगाली ब, ६० १०२ ५ से