पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३० ! हिंदुई साहित्य का इतिहास नाम के यहाँ जाना बाई "नाम की एक वी दासी थी, जो स्वयं रचयिता थी र जिसने परम्परा से प्रसिद्ध 'आनंग' की भी रचना की । वे शकसंवत् १२५० ( १३२८ ई०) में मृत्यु कई प्राप्त हुए । उनके सम्बन्ध में ‘भक्तमाल' में इस प्रकार उल्लेख है : छपय नामदेव प्रतिज्ञा निर्वही ज्यों इंत नरहरिदास की। वाल दशा बीठल्य3 पान जाके पय पीयो । मृतक गंज जिघाइ परचो असुरनि को दीयो । सेज सलिल ने काद्रि पहले जैसी ही होती। देवल उलटो देखि सचि रहे सघ ही सोती । पंडरनाथ* कृति अनुग त्यों छानि सुकर छाई दास की। नामदेव प्रतिज्ञा निर्वी क्यों त्रेता नरहरिदास की ॥ टाका नाभा जू ने नाम देव को तुला प्रहाद ( नरहरिदत ) से की है, क्योंकि जिन सत्र स्थानों में विष्णु ने प्रसाद को दर्शन दिए, उन्हीं स्थानों में उन्होंने नाम देव को दर्शन दिए । १ अथवा उचत रूप में जाना बाई । जहाँ हिंदू फारसां ‘ज को ‘ज' कहते हैं, वहाँ कभाकभा मुसलमान भारतीय ज’ को कहते हैं। इसके भारत में ‘ज' और 'पा' में निरतर गड़बड़ है।ढ़ां रहती है। देखिए, ४० ८३, ज.ना बेगम पर लेख । २ वैष्णवों में प्रसिद्ध व्यक्ति प्रह्माद आया दूसरा नाम । देखए, श्री विल्सन का ‘विष्णु पुराए, १२४ तथा बाद के पृष्ठ। ३ इस मूर्ति के संबंध में आगे प्रश्न उठेगा। वे इस शध्द का अर्थ है ‘स्वाम’, अर्थात् पण्डर या पण्ढरपुर के देवता । यह नगर बौजापुर या बीजापुर प्रान्त में है, जो अंगरेजा के नक्शों , Punderpir लिखा जाता है, देशान्तर ७५९२४६ अक्षांश १७°४०, ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के देवता विष्णु के अतिरिक्त और कोई नहीं हैं।