पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८७

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१३२ | हिंदुई साहित्य का इतिहास इस प्रकार जब बाम देव गाँव चले गए तो नाम देव ने दिन में सेवा की, और रात को एक कटोरे में मिश्री मिला दूध लेकर मूर्ति को मोग के लिये अर्पित किया, किन्तु मूर्ति ने दूध न पिया । दूसरे दिन भी यही हुआ। तीसरे दिन उन्होंने कटोरा रखा, किन्तु पहले दिनों की माँति मूर्ति ने दूध न पिया में नाम देव ने अपनी छुरी निकाली, और गला काटने ही वाले थे, कि विष्णु ( भगवत ) ने जो भक्तों के सहारे हैं, हाथ" पकड़ लियाऔर उससे दूध पी लिया। तीन दिन व्यतीत हो जाने पर शाम देव लौटे, और नाम देव से पूछा कि तुमने किस प्रकार सेवा की । नाम देव ने उत्तर दिया। : ‘नाना जी, जाते समय क्या आप मूर्ति से नहीं कह गए थे कि मेरा धेवता तुम्हारे लिये दूध लायेगा, साथ ही क्या वह मुझे नहीं जानती, और क्या वह इतनी ली है कि मेरे द्वारा आर्षित दूध नहीं पीती ’ नाम देव ने अंत में तीसरे दिन जो हुआ उसका वर्णन किया, जो कि पहले दिनों की भाँति ही उन्होंने मूर्ति के पीने के लिए दूध अर्पित किया था। राजा ने जब यह बात सुनी, उसने नाम देव को बुला भेजा और कहा : मुझे करामात दिखाए। नाम देव ने उत्तर दिया - 'यदि मुझ में करामात दिखाने की शक्ति होती, तो क्या मैं यहाँ बुलवाया। जाता १५ राजा ने .द्ध होकर कहा : इस मरी गाय को जीवित किए बिना तुम घर वापिस नहीं जा सकते ।' तत्र संत ने यह पद कहा : रागपद। है दुनिया के मालिक, मेरी विनती सुनो मैं तुम्हारा दास हैं है कृष्ण, जो इच्छा मैं तुम्हारे सामने प्रकट कर रहा हूँ उसे सुनो । - गरी निवा, क्यों नहीं इस विचारी गाय को फिर से जीवित कर देते 3 अथांत् मेरे वित्रार से मूर्ति के हाथ से जो उनकी ओर बढ़ा। 3 यह निस्संदेह आदिलशाही बंश, जिसने १४८९ से १६८६ तक राज्य किया, जो बीजापुर का कोई मुसलमान राजा प्रतीत होता है ।