पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२९८

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पीपा [ १४२ समान है जिसकए जल जाना निश्चत है—यह कटे हुए तृणों पर लेप करने या धातु पर दीवार के समान है । सुबह होते ही, पोग बिना किसी से सलाह किएबनारस के रास्ते पर चल पड़ेऔर शीघ्र ही रामानंद के द्वार पर पहुँच गए । द्वार रक्षक स्वामी को उनके जाने की सूचना देने के लिए बर के अन्दर गया : तिस पर स्वामी ने चिल्ला कर कहाः मेरा राजा से क्या मतलघ १ क्या वह जो मेरे पास है उसे लूटने आया है ११ ये शब्द सुनते ही, राजा ने वास्तव में अपना मट्ठल नष्ट करने की आज्ञा दे दी। तत्र रामानंद ने राजा को संबोधित करते हुए कहा'क्या तुम कुंए में गिर सकते हो !' पीपा ने उसी क्षण कुंए में गिरना अपना कर्तव्य समझा। जो लोग वहां उपस्थित थे , उन्होंने हाथ पकड़ कर निकाला , तव रामानंद ने पीठ को अपने पास बुलाकर उन्हें एक मंत्र दिया, और यह क३ते हुए उन्हें उनके देश वापस भेज दिया : ‘साधुओं के साथ जैसा व्यवहार करना चाहिए वैसा ही यदि वैष्णवों के साथ किया गया। सुहूँगातो मैं तुम्हारे यहाँ अगा" पीपा तब अपने देश लौट आएऔर इतने उत्साह के साथ साक्ष्यों की सेवा में तत्पर हो गए, कि जो संधु रामानन्द के पास छाते , वे ही पीपा की मद्धिमा का वर्णन करते थे । उनकी ख्याति देश देश में फैल गई । जध कुछ वर्ष और दिवस व्यतीत हो गएतो पीपा ने रामानन्द को अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए लिखा पत्र ५कर, स्वामी ने चार शियजैसेकबीर, आदि, अपने साथ लिए, और उधर चल दिए | पीषा ने जब यह समाचार पाया , तो उनसे भेंट करने झाए । वे उनके चरणों पर गिर गएऔर साष्टांग दण्डवत किया । उन्होंने संत के साथियों के साथ भी अत्यन्त नम्रतापूर्ण व्यवहार बकिंया । वे रामानन्द और उनके साथियों को महल में ले गए । उन्होंने गुरु और उनके साथियों की सत्र प्रकार से आवभगत की;