पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३००

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[ १४५ . गए । पीपा की यह दिव्य-शक्ति देखकर, लोगों की भीड़ रातदिन इको रहने लगी । सीता ने उनसे कहा : यहाँ से चला जाना आवश्यक है, क्योंकि यदि यह भीड़ कुछ और दिन हम लोगों के पास इकट्ठी होती रही, तो भक्तिसाधना नष्ट हो जायगी, और इमरा तस धूल में मिल जायगा ।' यह सलाह सुनकर, पीपा अर्ध रात्रि के समय चुपचाप द्वारिका से चले गए । छठे मिलान मेंपठानों ने सीता का सौन्दर्य देख उन्हें छीन लियाकिन्तु राम तुरंत धाएऔर उन सब को मार कर सीता को पीपा के हवाले कर दिया । तत्र पीपा ने सीता से कहा : अब तुम घर वापिस जाओ, श्योंकि मार्ग में तुम बलाक्रांत होगी ।’ सीता ने कहा : पीया, तुम तो बैरागी हो गए हो, किन्तु अब भी तुमने वह अवस्था ठीक-ठीक प्राप्त नहीं की है। जब मैं मार्ग में बलाक्रांत हुई, . तब तुमने तो कोई साहस का कार्य नहीं किया, क्योंकि मेरे रक्षक ने मेरी रक्षा की ।' पीपा ने उत्तर दिया: मैं तो इस बात की परीक्षा लेना चाहता था कि तुममें शक्ति है, या नहीं।’ वे आगे चलेऔर जंगल में उन्हें एक शेर मिला । पीपा ने उसे अपनी माला से संपर्क किया और उसके कान में एक मंत्र पढ, इस प्रकार उसे उपदेश दिया : 'न तो मनुष्यों पर और न गायों पर आक्रमण करोकिन्तु उदर-पूर्ति के लिए जो आवश्यक हो उसे ख कर अपना पोषण करो ' १ .ः १ प्रभु यीवू ग्रीष्ट के निन जाने के सम्बन्ध में एक ऐसी ही कथा का वर्णन केसिबत (Kessaeas) ने किया है। उनका कहना है: 'जोसेफक को रास्ते में एक बड़ा शेर मिला जे एक दुराहे पर खड़ा हो गया था , और क्योंकि वे उससे डर गए थे, का यीशु ने गैर का सम्बोधित करते हुए कहा : जिस बैल के चोइने का हम स्ख देख रहे है, वह एक गरीब आदमी है , तुम एक ऐसी जगह जाओ, जहाँ तुम्हें ए ऊँटे का मृत शरीर मिलेगा, उसे खाओ ' जो० लू नेट ( Brunet , फा०--१०