पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०४

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पीपा। [ १४६ के साथ वे चिता के पास पहुंचे, किन्तु इसी बीच में पीप आ गए। सती चिलाई ‘राम राम, उसकी जीभ एक क्ष ण के लिए भी न रुकी। पीपा ने हंसते हुए कहा : मेरी माँ, क्यों रामनाम लेती हो, उस समय क्यों चुप हो गई थीं जब तुम जीवित थीं ? मृत्यु के समय यह विचार क्यों उठा १ तव तेलिन के मन में विश्वास से मिश्रित आदर का भाव उत्पन्न हुग्राम । उसने कहा'तुम्हारे शाप से मेरे पति की मृत्यु हुई है । मेरे भाई, अश मुझे क्या कहना चाहिए जिससे मेरा पति एक क्षण में जीवित हो जाय ।’ पीपा ने कहा विष्णु की प्रार्थना करो, तो तुम्हारे पति की लाश फिर जी उठेगी, और तुम स्वयं न मरोगी । इन शब्दों ने तेलिन को शान्ति प्रदान की, उसने प्रार्थना की और पीा ने लाश जिंदा कर दी । वे पति और पत्नी को घर ले गएऔर उन दोनों को दीक्षा दी ; तत्पश्चात् उन्होंने विध्णु के भक्त बुलाए, और इस अव सर पर उन्होंने बड़ा उत्सव मनाया । अम मुझे अपना अहंकार मिटाना चाहिए; किन्तु मैं जाऊँ कहाँ १५ इस प्रकार कहते हुए बिना यह जाने कि कहाँ जा रहे हैं वे अनिश्चत दिशा की ओर चल दिए। चिन्तु घाट के मार्ग पर उन्हें एक विष्णु-भक्त मिलाजो उन्हें अपने घर ले गया । प्रत्येक दिन उनकी प्रीति बढ़ती ही गई । अंत में पीपा ने वड्र्षो से चल देना चाहा । यह जान कर वैष्णाष बड़ा दुःखी हुआ । अपने हृदय को प्रेम से. और आंखों को आंसुओं से भर उसने कहाः ‘हे रामसंत मुझसे क्यों अलग होना चाहते हैं १५ संघ साधुों ने इकठे होकर पूजा की और खाने के सामान से भरी एक गाड़ी पी को दी। उन्होंने उन्हें रुपयों से से भरी एक थैली भी दी । मैट रूप में उन्होंने बहुतसे कपड़े दिएकिसी ने पहिनने के लिए, किसी ने ओोढ़ने के लिए न तत्पश्चात् पीपा उस घर से चले , किन्तु डाकू या हुँचे, और उन्होंने घाट रोक लिया , उन्होंने गाड़ी ले ली और उसे लूट लिया । पीपा को पैदल चलना पड़ा । उन्होंने कहा : आज मेरी मात्मा को प्रसन्न करने वाली बात