पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०८

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पुष्प्रदान्त ) [ १५३ बेचैन और व्यथित राजा शूरसेन' ने उन्हीं से अपने संबंध में कहा : पापकर्म मेरा स्वभाव बन गया है, क्षमा मुझ से दूर भाग गई है ।' वह सघ दिशयों में घूमा, घोड़े पर चढ़ा, और अपनी उत्तेजना में चिल्लाता सिरा । अस्सी कोस तक जाने के बाद राजा उनके पास फिर आया ; वह अपने महल में वापिस आया और अपनी प्रजा का अभिनन्दन प्राप्त किया । उसने बहुत-सा पूजापाठ किया ; आपने महल के धन का आधा भाग ग़रोत्रों में बाँट दिया, औौर पीपा से कहा : स्वामीजी मुझे छोड़ कर न जाइए, मैं आपका आदर काँगा : मैं आपसे सच्ची प्रतिज्ञा करता हूँ ? यहाँ पर जिन कायों का वर्णन किया है पीपा के ऐसे ही शून्य अनेक कार्यों का वर्णन किया जा सकता हैं, किन्तु क्या मैं उन सत्र का उल्लेख कर सकता हूँ ? इसलिए उनमें से कुछ का वर्णन कर ही मुझे संतोष है ।' पुष्पदान्त* ‘महीन स्तोत्र' शीर्षक एक कविता के रचयिता हैं। मैंने यह नाम स्वर्गीय मार्सडेन (Mausden ) की पुस्तकों के सूचीपत्र, ४० ३०७, में पाया है, किन्तु उसका ऐसे अनिश्चित रूप में उल्लेख । अथवा सूरजसेनजैसा कि अन्य रूपान्तरों में मिलता है। अन्य कथाओं में इसी नरेश का कई बार प्रश्न उठा है जिनका कोई महत्व न होने के कारण मैं अनुवाद नहीं दे रहा हूं । यह शुरसेन बंगाल का राजा था, जिसने ११५१ से ११५४तक राज्य किया और जैसा मैं कह चुका हूँ, इससे पीपा का आविभव काल ईसवी सन् को बारहवीं शताब्दो का मध्य भाग निकलता है। २ शब्दशः, ‘दसों दिशाओं में ’ 3. पीषा से संबंधित न्ल छपप ‘भक्तमाल’ के १८३ ई० ( नवलकिशोर प्रेस लखनऊ ) के संस्करण से लिया गया है ।-अनु० ४ पुष्पदान्त : पुष्प-फूलऔर दान्त देनेवाला से