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हिंदुई साहित्य का इतिहास

के लिए भी यद्यपि आज कल फ़ारसी अक्षरों का प्रयोग किया जाता है, हिन्दू, अपने पूर्वजों की भाँति प्रायः देवनागरी अक्षरों का प्रयोग करते हैं।[१]

मैंने यहाँ हिन्दुस्तानी के राजनीतिक या व्यावसायिक लाभों के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा। इस तथ्य का, निर्विवाद होने के अतिरिक्त, मेरे विषय के साथ कोई सम्बन्ध नहीं हैं। किन्तु, पहले तो, बोलचाल की भाषा के रूप में, हिन्दुस्तानी को समस्त एशिया में कोमलता और विशुद्धता की दृष्टि से जो ख्याति प्राप्त है वह अन्य किसी को नहीं है।[२] फ़ारसी की एक कहावत कही जाती है जिसके अनुसार मुसलमान अरबी को पूर्वी मुसलमानों की भाषाओं के आधार और अत्यधिक पूर्ण भाषा के रूप में, तुर्की को कला और सरल साहित्य की भाषा के रूप में, और फ़ारसी को काव्य, इतिहास, उच्च स्तर के पत्र-व्यवहार की भाषा के रूप में मानते हैं। किन्तु जिस भाषा ने समाज की सामान्य परिस्थितियों में अन्य तीनों के गुण ग्रहण किए हैं वह हिन्दुस्तानी है, जो बोलचाल की भाषा और व्यावहारिक प्रयोग के, जिनके साथ उसका विशेष सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, रूप में उनसे बहुत-कुछ मिलती-जुलती है।[३] वह वास्तव में भारत की


  1. जहाँ मैंने लेखकों के नाम और रचनाओं के शीर्षक मूल अक्षरों में दिए हैं, मैंने, अवसर के अनुकूल, अरबी या संस्कृत वर्णमाला का प्रयोग किया है।
  2. देखिए जो कुछ दिल्ली के अम्मन ने इसके संबंध में कहा है, मेरी 'रुदीमाँ' में उद्धृत, (प्रथम संस्करण का) पृ॰ ८०।
  3. सेडन, 'ऐड्‌रेस ऑन दि लैंग्वेज ऐंड लिट्‌रेचर ऑव एशिया', पृ॰ १२