पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३११

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१५६ । हिंदुई साहित्य का इतिहास देख पाई, किन्तु अद्भुत गोमती में उनका नाम हो गया । सुबह होते ही यह बात सारे नगर में फैल गई, और नगरनिवासी महल के चारों चोर इकट्ठा हो गए । आश्चर्यच किंत पृथीराज ने उनसे हजारों रुपए A भेंट स्वरूप पाए । तब उस स्थान पर जहाँ भगवान् उन्हें पुकारने के लिए रुके थे उन्होंने एक मन्दिर बनवा दिया, और उसमें एक मूर्ति स्थापित की जिसका यश संसार ने गाया। एक दिन एक अंधा ब्राह्मण एक शिव-मंदिर के द्वार नया पर और धरना के बहाने अपने नैन माँगे । शिव उससे कहानैन न तेरे भाग्य में नहीं हैं ।’ उसने उत्तर दिया : ‘तुम्हारे तीन आंखें हैं । ' उनम से दो मुझे दे दो, और एक अपने पास रख लो ’ तब शिव ने, उसके आग्रह से, जिससे उसकी श्रद्धा प्रकट होती थी, द्रवित हो कहा : तेरी देखने की शक्ति पृथोराज के गोले में है मैं उसे अपनी आखा स लगt , और तू देखने लगेगा। ब्राह्म ण राजा के पास गया। और जो कुछ हुआ था उनसे कह दिया । ब्राषणों का गौरब जानते हुएजो सम्मान उनका कहा जाता है उसके मिट जाने के भय से, उन्होंने अपना टैगोरा देने से इंकार कर दिया । किंतु सच लोगों को स्वीकृति लेकर उन्होंने एक नया टैगोछा मृगयाऔर उसे अपने शरीर से छुड़ा कर, ब्राह्मण को दे दिया । ब्राह्मण ने उसे अपनी आंखों से लगाया भी नहीं था कि नए खिले हुए कमल की भाँति उसकी ऑाँखें खुल गई। प्रहा 'ग्रंथ'( सिक्खों की ) पिता की पुस्तक में सम्मिलित धार्मिक कविताओं के रचयिता हैं ।

  • इच्छानुसार कोई काम कराने के लिए भारत में अत्यधिक प्रयुक्त साधनजिसमें

, फल प्राप्ति तक जिस स्थान पर बैठा जाता है उसे छोड़ा नहीं जाता. । . . - २ सा० ‘र्य, प्रसन्नता', पाटल खण्ड के एक सामन्त का नाम ३ नानक पर लेख देखिए मैं :