पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३२५

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१७० G हिंदुई साहित्य का इतिहास है वे न कुड़ लाते हैं और न ले जाते हैं । उदार व्यक्ति का सुय उसके साथ जाता , और लोभी की आत्मा को निंदा ढक लेती है । जीवन के सुद्ध वास्तव में हैं, अनेक रहे हैं, और बहुत से अभी होंगे । संसार कभी नाली नहीं होता । जिस प्रकार पेड़ की५तियाँ होतो हैं, जीतें पतियों के गिर जाने से नई पत्तियाँ प्रकट हो जाती हैं । मुझई पत्ती में अपना मन मत रमानो, किन्तु हरे पत्रदल को आत्मा खोजो | हज़ार रुपए का घोड़ा मर जाने पर किस काम का; किन्तु जीवित ट तुम्हें तुम्हारे मार्ग पर ले जायगा । उस व्यक्ति में कोई आशा मत रखो जो मर चुका है, जो जीवित है उसी में भरोसा रखो। जो मर चुका है वह फिर जीवित नहीं होग...कपड़ा फिर शायद नहीं चुना जा सकता, एक टूटा बरतन फिर शायद नहीं बनाया जा सकता। जीवित मनुष्य का स्वर्ग या नरक से कोई संबंध नहीं; जत्र शरीर धूल में मिल जाता है, व सन्त और खल में क्या अन्तर रह जाता है १ पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन सबसे मिलकर शरीर बना है। इन चार तत्वों से सुष्टि की रचना हुई है, और कोई अन्य नहीं है । वही ब्रह्मा है, वही चींटी है; सभी इन तत्वों से बने हैं । हिन्दू और मुसलमान एक ही प्रकृति से निकले हैं । वे एक ही की दो पत्तियाँ हैं ! ये अपने धार्मिक व्यक्तियों को मुल्ला' कहते हैं, वे ‘पण्डितकहते हैं । एक ही मिट्टी के वे दो बर्तन हैं; एक ‘नमाज़' पढ़ते हैं, तो दूसरे ‘पूजा करते हैं । अन्तर कहाँ हूँ १ मैं तो कोई अन्तर नहीं देखता ! वे दोनों द्वैत सिद्धान्त का अनुगमन करते हैं। ( आत्मा और पदार्थ का अस्तित्व ).....उनसे विवाद मत करो - किन्तु उन्हें समझान्नो कि वे एक हैं । व्यर्थ के सब विवाद छोड़ो औौर सत्य पर, अर्थात् दयाराम के सिद्धान्त पर, दृढ़ रहो । अंत में ये कुछ पंक्तियां हैं जो सच्चे दर्शनशास्त्र के योग्य हैं : सु सत्य की घोषणा करने में भय नहीं है । मैं प्रजा और राजा