पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३२६

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बचा सिंह [ १७१ में कोई भेद नहीं जानता, गुहै न तो भक्ति की आवश्यकता है और न श्रादर की, और मैं केवल गुणों से समाज का पोषण चाहता हूँ। मैं केवल वही चाझता हूं जिसे मैं सरलतापूबक प्राप्त कर सकता हैं; किन्तु मेरे लिए एक महल और एक झाड़ी एक ही वस्तु हैं । मैंने अपनी या तुम्हारी गलती मानना छोड़ दिया है, और मैं न लाभ जानता हूँ न हानि । यदि मनुष्य इन सस्यों का उपदेश दे सकता है, तो वह लाखों की प्रारंभिक ग़लतियों का उन्मूलन कर सकता है । ऐसा उपदेशक आज दुनिया में है, और वह दयाराम के अतिरिक अन्य कोई दूसरा नहीं है ।? बच: सिंह आगरे के ‘जेनेरल टैलौग’ और ऊंकर (Zenker ) के अपने ‘Bibliotheca Orientalis' में उल्लिखित हिन्दी रचना, ‘ता वली 3 ( गीतों में प्रेम कथा ) के रचयिता हैं। बद्री लाल ( पंडित ) रचयिता हैं : १. उत्तरपश्चिम प्रदेश की सरकार की आज्ञानुसार भारत के स्कूल और कॉलेजों की संस्कृत कक्षाओं के लिए १८५१ में मिर्जापुर में मुद्रित ‘हितोपदेश की प्रथम पुस्तक के हिन्दी अनुवाद के । ‘उप देश दर्पण’ शीर्षक के अंतर्गत उसका एक बनारस का संस्करण है। इस संस्करण की यह विशेषता है कि जहाँ तक हो सका है मूल १ तासी कृत इतिहास के द्वितोय संस्करण में इन उद्धरणों का पाठ तो यही हैं किन्तु अनुच्छेदों के विभाजन में अंतर है।-अनु० का० बच्चा 3 तुलसीवास पर लेख में इसी शीर्षक की एक रचना का उल्लेख है। ४ भा० 'बद्री ( उत्तर भारत में तीर्थ स्थान ) का प्रिय’