पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३३३

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१७८1 हिंदुई साहित्य का इतिहास टीका बिल्व मंगल ब्राह्मण नामक एक व्यक्ति श्रत्यन्त मतिधीर था, जो कृष्णा के किनारे रहता था । दूसरे किनारे चिंतामणि नाम की एक स्त्री रहती थी। एक समय, जब कि वे डके किनारे स्नान कर रहे थे, चिंतामणि दूसरे किनारे पर स्नान करने के लिए आई। उसने एक गाना इतने अच्छे घर से गाया, कि बिल्व मंगल अधीर हो गएऔर तत्पश्चात् उसके राज में, अपना सब कुछ स्याग कर उसके घर में जा कर रहने लगे । एक दिन उन्होंने अपने पिता का श्राद्ध किया, सभी श्रागत व्यक्तियों को भोजन बाँटने में अत्यधिक समय लग गया, साथ ही वे व्याकुल हो गए । तुरंत वे नदी के समीप पाए । किन्तु चार महीने की वर्षा के कारण नदी बहुत बढ़ी चढ़ी थी ; और क्योंकि शाम हो चुकी थी, उन्हें कोई नाव भी न मिली । उन्होंने सोचा कि यदि मैं रात में नदी पार करता , तो पहुंच नहीं सकता , बीच में ही रह जाऊँगा हैं और यदि मैं यहीं रह जाने का निश्चय करता हूँ तो बिना चिंतामणि को देखे जीवित नहीं रह सकता ; यदि दोनों प्रकार से जीवन से हाथ धोना है, तो पहला मार्ग ग्रहण करना उचित होगा । इस प्रकार विचार कर, वे नदी में कूद पड़े, और डूबते-उतराते रात भर में आधी पार की । वे मृत्यु को प्राप्त होने ही वाले थे कि एक लाश उनके सामने से निकली । अपनी प्रियतमा द्वारा भेजी गई नाब समझ कर, वे मृत्यु से बचने के लिए सहारा लेकर उस पर बैठ गए; और सचमुच लाश दूसरे किनारे की ओर बढ़ चली । किनारे लगते ही बिल्व मंगल ने चिंतामणि के यहाँ पहुँचने में कुछ भी विलंब न किया। एक साँप मकान की छत से लटक रहा था । उन्होंने मन में सोचा : निस्संदेह मेरी अच्छी-सी प्रियतमा ने मेरे विलंब से चितित होकरसोने से पहिले यहू रस्सी लटका दी होगी ।’ तब उसे रस्सी समझ कर वे उसके सहारे छत पर चढ गए, और चिंतामणि