पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३३५

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१८० ? हिंदुई साहित्य का इतिहास वे अधिक समय तक उदासीन न रह सके, वे उसे देखने लगे। उन्होंने अपनी माला, अपने थैले, अपनी भगवत् गीता औौर टीके का परित्याग कर दिया । पहले के स्थान पर सोना, दूसरे के स्थान पर स्त्री, तीसरे के स्थान पर तलवार वछनीय है। वे हरि पर निर्भर होकर रहने चले थे, किन्तु उसके मार्ग के बीच में ही प्रेम के एक आलात ने उसे दूर कर दिया। जो स्त्री उनके मन चढ़ गई थी वह तुरन्त अपने घर पहुंची। बिल्व मंगल दरवाजे पर ही रह गए । उधर से साहूकार पर नाया, और ज्योंही उसने साधु को दरवाजे पर खड़ा देखा, उसने अपनी स्त्री से उन्हें दान देने के लिए कहा : स्त्री ने उससे कहा : यह व्यक्ति साधु नहीं हैमैंने तपसी के रूप में उसकी ख्याति सुनी थी, और मैं जानती हूँ कि वह मेरे पीछे लग आया है ।’ ये शब्द सुनते ही साहूकार ने बिल्व मंगल को भीतर बुलाया, उन्हें अपनी चित्रसारी में बिठाया, और अपनी स्त्री से सर्वे को खाने के लिए थाली में भोजन तैयार कर देने, उनकी इच्छानुसार सब प्रकार की सेवा करने के लिए कहा । त्री ने अपने पति की आाश का पालन कियाऔर ठीक-ठीक वही किया जो उससे करने के लिए कहा गया था वह तुरन्त एक थाली में भोजन सँवार कर चित्रसारी में पहुँची । किन्तु भगवत् ने बिल्व मंगल का मन बदल दिया, और उन्होंने स्त्री से कहा : मुझे दो सुइयाँ ला दो में उसने वैसा ही किया । तय चिल्व मंगल ने उन्हें लेकर, अपनी दोनों आंखों को छेदते हुए कहा : ‘थे ही दो बुरी चीजें हैं जिनके कारण मैंने वृन्दावन के मार्ग में जाना छोड़ दिया था, और मैं याँ छा गया था ' साहूकार की घो इस दृश्य से भयभीत हो जो कुछ हुया था उसे अपने पति से कह ने गई । साहूकार दौड़ा आया