पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३३८

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बिहारी लाल [ ११ चेतसिंह के आश्रय में पंडित हरिप्रसाद द्वारा सुन्दर संस्कृत औदों में अनदित हो चुकी है। मैं हमारे संवत्सर की सोलहवीं शताब्दी के आारम्भ में बिहारी आमेर २ दरबार के प्रिय पात्र थे। कहा जाता है कि इस बात की सूचना मिलने पर कि महाराज जैसाद,' जो इसी समय वर्तमान थे, अपनी नवविवाहिता तरुणी पत्नी के सौन्दर्य पर इतने मुग्ध थे, कि राज्यकार्य भी बिल्कुल भूल गए, उन्होंने एक उपलूध दास द्वारा एक दोह। महाराज के कानों तक पहुँचाया ताकि वे अपनी सिंद्रा से जाग उठे । इससे उन्हें सफलता ही प्राप्त नहीं हुईवरन् राज्याश्रय प्राप्त हुआ । वह दोहा इस प्रकार है (मूल में अनुवाद दिया गया है—अनु8) : नदि पराग नहिं मधुर म नर्तीि विकास एदि काल । अली कली ही सा ध्यो आगे कौन हवा ॥ उनकी कविताओं का जो क्रम बर्तमान समय में उपलब्ध है वह आभागे राजकुमार आजमशाह के लाभार्थ निर्धारित किया गया था, और इस प्रकार का संस्करण आजमशाही’ के नाम से पुकारा जाता । है ४ ‘सतसई' सात सौ दोहा या दोहरा (वर्णनात्मक शैली की दो पंक्तियाँ) में रचा गया एक प्रकार का दीवान है। राधा और गोपियों के साथ कृष्ण की क्रीड़ाएँ उसका प्रधान विषय है । विद्वान् श्री विल्सन के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि बिहारी ने अपनी 'सतसई' संबंधी प्रेरणा गोबर्द्धन कृत ‘सप्तशति’ से ग्रहण की। सप्तशति’ रचना भी विभिन्न विषयों पर सात सौ छंदों का संग्रह है। ५ ‘एशियाटिक रिस', जि०, ४० २२१ २ सूबा जयपुर को प्राचीन राजधानो ३ यहाँ पर निस्संदेह आमेर या जयपुर के राणाजयसिंहजि नका नाम मिर्जा राजा भों है, से तात्पर्य है । साह ‘शाह' का भारतीय रूपान्तर है । .४ कोलघु क, डिसटेंशम्स' (“एशियाटिक रिसर्च’, जि० ७, १० २२१, और जिज ० १०१० ४१३ )