पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३३९

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१८४] हिंदुई साहित्य का इतिहास अनुमानतः इस पिछली रचना का हिन्दुई अनुवाद ही लल्लूलाल ने ‘सप्त शतिका' शीर्षक के अंतर्गतजो इस काव्य को दिया गया नाम भी है, कलकत्ते से प्रकाशित किया ।’ जो कुछ भी हो, बिहारी की ‘सतसई’ की अत्यधिक प्रसिद्धि है, और पंडित बाबूराम द्वारा यह १८०६ में अठपेजी साइज में कलकत्त से प्रकाशित हो चुकी है कृति की दूसरी जिल्दमें मैं इस रचना पर फिर विचार । इस कहूँगा । उसके अन्य अनेक संस्करण हैं। सप्त शतिका’ शीर्षक संस्कृत रचना की एक प्रति, जो ईस्ट इंडिया पुस्तकालय के सुन्दर संग्रह का एक भाग है, में कोतक का लिखा हुआ निम्नलिखित नोट पाया जाता है : ‘सप्तशती ( या ७०० दोहे ), गोवर्धनाचार्य कृतअबंत पंडित (Avanta Pandita) की टीका सहित । यह बह मूल रचना कही जाती है जिससे बिहारी ने ‘सतसई' का अनुवाद किया और बाद को जो फेिर संस्कृत में अनूदित हो चुकी है ..किंतु भूमिका के द्वितीय बंद से मुझे इसके प्राकृत से अनूदित होने में संदेह होता है । तो भी जयदेव ने गोवर्धन की प्रशंसा की है । स्वयं उन्होंने पूर्ववती कवियों की प्रशंसा की है, काव्य की भूमिका का अंद ३० ।' सतसई की आठ विभिन्न ज्ञात टीकाओं की गणना की जा सकती है । कवि लाल कृत टीका बनारस से १८६४ में छपी है, ३६० चौपेजी पृष्ठ के मेरे पास दो हस्तलिखित प्रतियाँ हैं, एक फ़ारसी लिपि में, १ अनुमानतः मै इसलिए कहता हूं क्योंकि मैं इस रचना की एक प्रति भम नहीं। देख सका। । २ इस काव्य की पद्धति के वि गप पर, देखिए कोलन ., ‘एशियाटिक रिसचेंज', जि०, १०१२ ४१३ 3 देखिए लल्लूलाल पर लेख । वे 'एशियाटिक रिसर्च', जि० १०, ४० ४१४ और ४१३