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भूमिका

पूर्ण बनाता है, प्रत्येक पुष्प की भाँति जिसमें, एक फ़ारसी कवि के कथनानुसार, अलग-अलग रंग ओ बू रहती है। भारतवर्ष वैसे भी कविता का प्रसिद्ध और प्राचीन देश है; यहाँ सब कुछ पद्य में है―कथाएँ, इतिहास, नैतिक रचनाएँ; कोष, यहाँ तक कि रुपए की गाथा भी[१]। किन्तु जिस विशेषता का मैं उल्लेख कर रहा हूँ वह केवल कर्ण-सुखद शब्दों के सुन्दर सामंजस्य में, अलंकृत पंक्तियों के कम या अधिक अनुरूप क्रम में ही नहीं है; उसमें कुछ अधिक वास्तविकता है, यहाँ तक कि प्रकृति और भूमि सम्बन्धी उपयोगी विवरण भी उसी में हैं, जिनसे कम या ग़लत समझे जाने वाले शब्द-समूह की व्याख्या प्रस्तुत करने वाले मानव-जाति सम्बन्धी विस्तार ज्ञात होते हैं। मैं इतना और कहूँगा कि हिन्दुस्तानी कविता धर्म और उच्च दर्शन के सर्वोत्कृष्ट सिद्धान्तों के प्रचलित करने में विशेषतः प्रयुक्त हुई है। वास्तव में, उर्दू कविता का कोई संग्रह खोल लीजिए, और आपको उसमें मनुष्य और ईश्वर के मिलन-सम्बन्धी विविध रूपकों के अंतर्गत वे ही बातें मिलेंगी। सर्वत्र भ्रमर और कमल, बुलबुल और गुलाब, परवाना और शमा मिलेंगे।

हिन्दुस्तानी साहित्य में जो अत्यधिक प्रचुर हैं, वे दीवान, या ग़ज़ल-संग्रह, समान गति को एक प्रकार की कविता (ode) और विशेषतः दक्खिनी में, पद्यात्मक कथाएँ हैं। इन्हीं चीज़ों का फ़ारसी और तुर्की में स्थान है और इन तीनों साहित्यों में अनेक बातें समान हैं। हिन्दुस्तानी में अनेक अत्यन्त रोचक लोकप्रिय गीत भी हैं, और यही भाषा है जिसका वर्तमान भारत के नाटकों में बहुत सामान्य रूप से प्रयोग होता है।

मुझे यह कहना पड़ता है कि हिन्दुस्तानी साहित्य का बहुत बड़ा भाग, फ़ारसी, संस्कृत और अरबी से अनूदित है; किन्तु ये अनुवाद प्रायः महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे मूल के कठिन और संदिग्ध अंशों की व्याख्या करने के साधन सिद्ध हो सकते है; कभी-कभी ये अनुवाद ही हैं जो


  1. दे॰ 'आईन-इ-अकबरी' और मार्सडेन (Marsden) द्वारा 'न्यूमिस्मैटा ऑरिएंटालिआ' (Numismata Orientalia) शीर्षक रचना।