पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३४०

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बरभान [ १८५ फलतः अत्यन्त असुविधाजनक रूप में, और दूसरी देवनागरी अक्षरों में जो मुझे स्वर्गीय जे० प्रिन्सेप की कृपा से प्राप्त हुई थी, किन्तु दुर्भाग्यवश जिसमें अशद्धियाँ भरी पड़ी हैं । बारभान बीरभान जो हिन्दू सम्प्रदाय ‘साधु अर्थात् शुद्ध ' शुद्धवादी ) के संस्थापक माने जाते हैं दिल्ली प्रान्त में नारनौल के निकट नज हसिर (Brijhacir) के निवासी थे । विक्रम संवत् १७१४ ( १६५८ ईसवी सन् ) में उन्हें ‘सतगुरु' ( सच्चा पथप्रदर्शक ), जिसे ‘उदक दास’ ( अद्भुत देवता का दास ) भी कहते हैं, और मालिक का हुक्म’ ( स्वामी की आज्ञा या मानव रूप में ईश्वर के शब्द ) का दैवी प्रकटीकरण हुआ । बीरभान के दिव्य गुरु द्वारा दिए गए उपदेश मनुष्यों को शब्द’ या ‘साखी, अर्थात् कबीर के समान हिन्दी के मुक्क छन्दों, द्वारा दिए गए थे । वे कुछ ग्रन्थों के रूप में संग्रहीत कर लिए गए हैं और साधुओं के धार्मिक सम्मेलनों में पढ़े जाते हैं । उन्हीं का सार लेकर 'आदि उपदेश', अर्थात् सर्व प्रथम उपदेश, नामक पुस्तक की रचना की गई इस पुस्तक में सभी साधुउपदेश बारह आज्ञा या हुक्मों में परिणत कर दिए गए हैं जो भिन्नभिन्न रूप में दुहराए जाते हैं, किन्तु जो सदैव पहिचाने जा सकते हैं । श्री विल्सन ने अपने सुन्दर ग्रंथ ‘सेम्वायर आन दि हिन्दू सेक्स ’ ( हिन्दू संप्रदायों का विवरण ) में उनका परिचय दिया है। मेरा विश्वास है कि उन्हें यहाँ उद्धत करने में पाठक सहमत होंगे :३ १ ये संप्रदायवाले Cathares कहे जाते है, जिसका नाम और विशेषता समान है और जिसके उसी के अनुरूप सिद्धान्त हैं। २ मूल पाठ ‘सतनामों साधमत' को पेरिस के राजकीय पुस्तकालय वाली बंगाल सिविल सर्विस के श्र एफ़० एच० रॉबेन्सन द्वारा उसे प्रदत्त हस्तलिखित पोथी, ३३ तथा बाद के पुष्ट, में है । - । सन् 4 से 7