पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३४१

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१८६ 1 हिंदुई साहित्य का इतिहास १. केवल उस ईश्वर को मानो जिसने तुम्हें पैदा किया है और जो तुम्हें मार सकता है, जिससे कोई बड़ा नहीं है, और फलतः जिस अफूले की ही तुम्हें पूजा करनी चाहिए । न तो मिट्टी, न पत्थर, न धातु, न लकड़ी, न वृक्ष, अंत में न किसी उत्पन्न हुई बस्तु की पूजा करनी आवश्यक है। । नेवल एक स्वामी है औौर स्वामी का शब्द है। जो मिथ्या प्रेमी हैं और कपटावरण करते हैं, वे ही नरक में गिरने का पाप करते हैं । २, नम्र औौर विनयशील बनो। सांसारिक मोह में मत पड़ो। अपने धर्मन्चिन्ह के प्रति सच्चे रहो ; भिन्न मतावलंत्रियों से समानता बचाओो, अपरिचित की रोटी मत खायो । ३ कभी झूठ मत बोलो । किसी समय किसी चीज़ की, मिट्टी की, पानी की, वृक्षों और पशुओं की, मुराई मत करो । ईश्वर की प्रशंसा में अपनी वाणी का प्रयोग करो धनधरती, पशु और उनके चारे की इच्छा कभी मत करो । दूसरे की सम्पत्ति का आदर करो, और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष रखो में बुरा कभी मत सोचो । पुरुषों, लियोंनृत्यों, दृश्यों के संपर्क में आने पर अश्लील वस्तुओं पर दृष्टि मठ जमा। ४. बुरी कथाएँ मत सुनो, रचयिता की प्रशंसा के अतिरिक्त और कोई नहीं। भजनों के अतिरिक्त न कथाकहानी, न बात, न निंदा, न संगीत, न गाना सुनो । ५. कभी कोई इच्छा मत करोन अपने शरीर के लिएन उससे संबंधित धन की । उन्हें दूसरों से मत लो । ईश्वर सब चोगे देता है, उसमें अपने भरोसे के अनुसार तुम्हें मिलता है । ६. जघ्र कोई पूछे तुम कौन हो, कह दो हम साधु हैं; जाति मत बतथोविवादों में मत पड़ों । अपने धर्म में दृढ़ रहो ; और मनुष्य में अपनी आशा मत रखो। ७. सफेद कपड़े पहनो, न तो रंग, न काजल, न अफ़ीम मिले