पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३४२

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[ १८७ पदार्थोंन मंदी का प्रयोग करो के न तो अपने शरीर पर कोई चिन्ह लगाओ, और न माये पर अपना कोई ख़ास साप्रदायिक चिन्ह लगाओो; न तो माला, में सुमिरनी, न रन पदिनो । ८, न तो कभी कोई नशीली चीज खाओ और न पियो, न पान चबानो, न इत्र संबो, न तम्बाकू पियो, अफ़ीम न खायो और न तंघो; न अपने हाथ फैलाओो, और न मूर्तियों औौर मनुष्यों के सामने अपना सिर झुकायो । 8. मनुष्यहस्या मत करोकिसी के साथ हिंसा मत कर; अपराधी को सज़ा दिलाने वाली गवाही मत दो, न कुछ बल पूर्व लो । १०. एक पुरुष केवल एक ही क ो, और एक स्त्री एक ही पति के स्त्री पुरुष की आज्ञाकारिणी हो ।' ११किसी भिडक के कपड़े मत लो ; न दान माँगो, और न भेंट ग्रहण करो । प्रेतविद्या में न तो विश्वास करो और न उसकी शरण लो। विश्वास करने से पूर्व जान लो पवित्र व्यक्तियों की संगतें ही एक मात्र तीर्थ स्थान हैं । उनमें से जो तुम्हें मिलें उन्हें प्रणाम करो । १२दिनदो अमावस्या के बीच के काल, महीनोंध्वनियों, और चिड़ियों तथा चतुष्पदों के संबंध में साधु को अंधविश्वासी नहीं होना चाहिए । वे केवल ईश्वर की इच्छा खोजते हैं। जो कुछ ऊपर कहा गया है उससे हम देखते हैं कि साधु लोग, जिन्हें एकेश्वरवादी भारतीय कहा जा सकता है, केवल एक ईश्वर की उपासना करते हैं । उसे वे ‘सत्तकर, अर्थात् सद्गुण का करने वाला, और ‘सतनाम, अर्थात् सच्चा नाम, के नाम से पुकारते हैं। इस अंतिम शब्द के कारणजिसका वे परमात्मा के लिए प्रयोग १ पाठ में, और भी है कि पुरुष को वी का छोड़ा हुआ नहीं खाना चाहिएकिन्तु, रिखाव अनुकूलइसके विपरीत की आशा है। के