पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३४३

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१८ हिंदुई साहित्य का इतिहास करते हैं, उन्हें कमीकभी ‘सतनामी’ के नाम से भी पुकारा जाता है ; किन्तु यह नाम एक दूसरे सम्प्रदाय के लिए विशेषतः प्रयुक होता है । उनका मत अत्यन्त सरल है । वे सभी प्रकार की मूर्सि पूजा का खण्डन करते हैं। वे अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा की अधिक भक्ति नहीं करते । सभी प्रकार के आभूषण उनके लिए निषिद्ध हैं । वे न तो नमस्कार करते हैं और न शपथ खाते हैं।' वे सभी प्रकार के व्यसनों से दूर रहते हैं, जैसेतंबाकू, पान, अफ़ीम और म। वे नर्तकियों के उत्सवों में कभी नहीं जाते । साधुओं के सिद्धान्तकुछ ईसाई मत के सिद्धान्तों के अतिरिक्त स्पष्टत: कबीर, नानक तथा भारत के अन्य धार्मिक दार्शनिकों के सिद्धान्तों से निकले हैं। तो भी, श्री विल्सन के अनुसार, जहाँ तक उनके स्मृष्टिनिर्माणछोटेछोटे देवीदेवताओं और मुक्ति या भौतिक जीवन से छुटकारे पर विचार हैं वे अन्य भारतीयों की भाँति सोचते हैं। में उनका कोई मन्दिर नहीं होता, किन्तु वे किसी मकान या मार्ग में किसी निश्चित तिथि पर इकट्ठा होते हैं । उनके समाज पूर्ण- साली के दिन जुड़ते हैं। दिन भर वे मनोरंजक बातचीत करते रहते हैं। शाम को इकट्ठा होकर वे ग्रीतिभोज करते हैं और उसके बाद वीरभान या उनके गुरु द्वारा रचे कहे जाने वाले छन्दों और दादू , नानक और कबीर की कविताओं का गान करते हुए रात्रि व्यतीत कर देते हैं । १ जैसा कि कोई भी देख सकता है, इस सम्प्रदाय को औरों से अत्यधिक समानता है । ३ ये सूचनाएँ डब्ल्यू॰ एन० टूट ( w B. Trant) कृत ‘नोटिस ऑन दि साथ, 'ट्रान्जैक्शन व दि रॉयल एशियाटिक सोसायटी, जि० १, २५१ तथा आगे के पृष्ठों से, ली गई है।