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हिंदुई साहित्य का इतिहास

दुर्भाग्यवश खोई हुईं मूल रचनाओं के स्थान पर काम आते हैं।[१] जहाँ तक फ़ारसी से अनूदित कही जाने वाली कथाओं से सम्बन्ध है, वे वास्तविक अनुवाद होने के स्थान पर अनुकरण मात्र हैं और परिचित कथाएँ ही नए ढंग से प्रस्तुत की गई हैं; अथवा एक सुन्दर अनुकरण हैं, जो कभी-कभी मूल की अपेक्षा अच्छी रहती हैं; उनकी रोचकता में कोई कमी नहीं होती।[२] इसके अतिरिक्त मेरे विचार से हिन्दुस्तानी रचनाएँ फ़ारसी की रचनाओं (प्रायः जिनकी विशेषता अत्यधिक अतिशयोक्ति रहती है) से अधिक स्वाभाविक होती हैं। वास्तव में इस साहित्य का स्थान फ़ारसी की अतिशयोक्तियों और संस्कृत की उच्च कोटि की सरलता के बीच में है।

यूरोप में लगभग अज्ञात इसी साहित्य का विवरण मैं प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरी इच्छा उसे समृद्ध बनाने वाले और विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करने वाले सभी प्रकार के पद्य और गद्य-ग्रन्थों की ओर संकेत करने की है। इसके लिए मैंने अनेक हिन्तुस्तानी-ग्रन्थों का अध्ययन किया है, और उससे भी अधिक सरसरी निगाह से देखे हैं। जहाँ तक हो सका है मैंने अधिक से अधिक हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त करने की चेष्टा की है: सार्वजनिक और निजी पुस्तकालयों के हिन्दुस्तानी भण्डारों से परिचित होने के लिए मैं दो बार इँगलैंड गया हूँ, और मुझे यह बात ख़ास तौर से कहनी है


  1. उदाहरण के लिए, जैसा, मेरा विचार है, 'बैताल पचीसी' (तथा अन्य अनेक रचनाओं) का हाल है। सुरत पर लेख देखिए।
  2. विला ने 'तारीख़-इ-शेर शाही' के संबंध में जो कहा है वही अन्य सभी अनुवादों के संबंध में कहा जा सकता है : 'अपने तौर पर इसकी फ़ारसी चाहे जितनी पूर्ण हो, मैं भी अंत में इसे पूर्ण बना सका हूँ।'

    गर चे अपनी तौर पर थी फ़ारसी इसकी तमान
    लेक अच्छी तरह पाया इसने हुस्ने इनसिरान

    (फ़ारसी लिपि से)

    बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के उत्साही मंत्री की स्नेहपूर्ण उदारता के कारण मुझे इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति प्राप्त हो सकी।