पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३५०

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[ १६५ की धार, शीर्षक रचना में, जो संस्कृत के आधार पर लिखी गई है, चौदह अध्याय हैं1 हमारे पाठकों में से जो वेदान्त प्रणाली से परिचित नहीं हैं वे उसका विकास स्वर्गीय कोलमुक्र’ कृत 'एसे ऑॉन दि फिलॉसोफ्री ऑॉध दि हिन्दू' ( हिन्दू दर्शन पर निबंध ) तथा श्री पोथिए ( M. Pauthier ) द्वारा प्रकाशित उसके फ्रेंच अनुवाद में पालेंगे । उसका कुछ भाव देने को दृष्टि से, हिन्दुस्तानी लेखक अफ़सोस ने अपने आराइश-इ-महफिल’ में उसके संबंध में जो कहा है उसे हम यहाँ उद्धृत करते हैं : ‘वेदान्त नामक शास्त्र व्यासदेव की रचना है । जो इस ग्रंथ के मत का अनुगमन करते हैं, वे एकता का सिद्धान्त मानते हैं : इस सिद्धान्त से वह इतना आनुप्राणित है कि उसकी आंखें सदैव केवल एक औौर वही पदार्थ देखती हैं । उसके अनुसार जीवों की विभिन्नता काल्पनिक है, वह वास्तव में केवल एक ही है, और यद्यपि सुष्टि में जो कुछ है वह उसी से निकला है, उस सबका उसके बिना कोई अस्तित्व नहीं 1 पदार्थों का श्रापस का संबंध जो हमारे गुणों और इस विचित्र जीव के सारतत्व को प्रभावित करता है ठीक वैसा ही है जैसा मिट्टी का पृथ्वी के साथ, लहरों का बल के साथप्रकाश का सूर्य के साथ । ' भवानी १८६८ में फतहगढ़ से प्रकाशित १६१६ पंक्तियों के ८ पृष्ठ की एक हिन्दी कविता 'बारह सास-बारह महीने के हिन्दू रचयिता का नाम है। ऐसा प्रतीत होता है इसी रचना का शीर्षक ‘रामचन्द्र की बारह १ ‘रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑव लन्दन' के विवरणों में

३ , अथवा पार्वतोशिव की पत्नी