पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३६२

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माधोदास [ २०७ जाय । इस बीच में उनकी पत्नी का देहान्त हो गया । यह देख कर कि ईश्वर ने उनके मन चाहे के विरुद्ध किया, वे निरुत्साहित हुए। “उन्होंने सोचा, यह तो वैसा ही हुआ जिस प्रकार एक यात्री ने रास्ते में थक कर एक घोड़े की सवारी की इच्छा प्रकट की ताकि वह आसानी से आगे बढ़ सके। किन्तु उसे घोड़ी पर चढ़ा एक मुगल मिला। क्योंकि उस घोड़ी का बच्चा थक गया था, इसलिए उसने यात्री को पकड़ कर, बच्चा उसके कंधों पर रख दिया ! जो अपनी स्थिति का गर्व करते हैं वे बहुत मूर्ख हैं । क्या ईश्वर के ही संरक्षण में हरएक चीज़ नहीं बनी रहती ? दोहा। दुम कहते हो : मैं अपने कुटुम्ब को खाना-कपड़ा देता है, क्या तुम यह बता सकते हो कि हरे बनाए गए वृक्षों औौर पौधों में से कौन से मुरझा जानेंगे ? इस प्रकार विचार कर उन्होंने त्याग किया और नीलाचल चले गए, और समुद्र के किनारे वृक्ष की शाखाओं से बनी झोपड़ी में रहने लगे । बिना भूखप्यास की परवा किएवे जगन्नाथ के स्वरूप चितन में मग्न रहने लगे । इसी बीच में माधोदास की ख्याति फैली । उनके दर्शन के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी जिससे उन्हें ध्यान और प्रार्थना के लिए समय न मिलने लगा 1 अपनी ख्याति नट करने के लिए उन्होंने भिक्षा माँगने जाने की सोची । सुघड़ होते ही वे एक वृद्धा जी के पास गए जो सफ़ाई कर रही थी । उसने फटे चीथड़े, जिन्हें वह हाथ में लिए हुए थी, उन पर फेंक दिए । इस चीज़ का मूल्य समझ कर माधोदास ने उन्हें उठा लिया और उन्हें पानी में धोकर सुखा लिया । रात को उन्होंने उनकी एक बत्ती बनाई, और एक दीपक जला कर, उसे भगवान् के मन्दिर में रखते हुए यह प्रार्थना की : जिस प्रकार इस स्त्री के