पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३६३

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२०८ | हिंदुई साहित्य का इतिहास दिए चिथड़ों से तुम्हारा मन्दिर प्रकाशित हुआ है, उसी प्रकार मेरा हृदय भी प्रकाशित हो ज्यों ही दीपक का जलना शुरू हुआ, बुढ़िया को संताप हुआ, और सिर धुनते हुए वह कहने लगी : मैंने चिथड़े एक वैष्णव के फेंक कर मारे हैं । क्या इससे भी अधिक कोई दुष्ट में हो सकता है ?" दूसरे दिन माधोदास इस स्त्री से भेंट करने गए । वह दौड़ी और उनके पैरों पर गिर अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी। माधोदास कृष्ण की सभी क्रीड़ा-स्थलियों के दर्शन करने के लिए सर्वप्रथम वृन्दावन गए, फिर ब्रज-दर्शन के लिए भाण्डोर’ (Bhar dir ) गए । वहाँमदास वैष्णव वैष्णवों से छिपकर रात को खाना खाते थे। माधोदास उनके पास जाकर बैठ गएऔर वहीं बैठे रहे । बत्र रात बहुत हो गई, तो म-दास ने लाचार होकर छिपी हुई सामग्री जमीन से निकाली और उसे पका कर, वृन की दो पतिों पर रख करमाधोदास को खाने का निमन्त्रण दिया । ज्यों ही उन्होंने उन चीजों की ओर हाथ बढ़ाया, वे कीड़ों में परिवर्तित हो स्वयं ही अदृश्य हो गई। क्षेमदास ने आश्चर्यचकित हो उसका अर्थ पूछा । संत ने उनसे कहा : जय तुम साधुओं से छिपा कर खाते हो, तो तुम सदैव कीड़ों का पोषण करते हो । इसके बाद तुम अपनी गलती का बोझ उतारने के लिए वारह वर्ष तक केवल कच्चा खाना खाओ। क्षेदाल ने वैसा ही किया। बहाँ से माधोदास हरियाना२ गए जहाँ उन्होंने अपनी प्रधान रचनाओं पर आधारित लीलाएं देखीं। इसी प्रकार को और बहुत सी बातें माधोदास के बारे में कह जाती हैं । मैंने एक उदाहरण देने तक अपने को सीमित रखा है। १ यह शब्द उस जिले का नाम प्रतीत होता है जसमें पज है। ३ देहली प्रान्त का जिला ।,