पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१४ | हिंदुई साहित्य का इतिहास भक्त निशान अजाय के काहूते नादिन लजी । लोकलाज कुल टंखला तज मीर गिरिधर भजी। टीका मीरा बाई ( अर्थात् श्रीमती मीरा ) मेड़तान के पूजा की पत्री थीं, जिनका विवाह मारवाड़ के राणा के साथ छुश्रा ने अपनी मता के घर में, बचपन से ही . वे कृष्ण की मूर्ति में डूबी रहती थीं और उन्हें अपना प्रियतम समझती थीं । जब उनके पति उन्हें लेने गए और जत्र उनके श्वसुर ग्इ उनका भावी उन्होंने सुना कि का ही निवासस्थान होने वाला है, तो उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई । पितृ- गृह से चलते समय उनकी माता ने मनवांछित वस्त्राभूषण साथ ले जाने के लिए उनसे कहा । उन्होंने कहा : 'यदि आप मुझे निहाल किया चाहती हैं तो कृष्ण की मूर्ति मुझे दीजिए ।' माता, उनकी जो उन्हें बहुत प्यार करती थीं, ने उन्हें उसे लाकर देने में कोई संकोच न किया । उन्होंने मूर्ति और उसकी संदूक को पालकी में रख लिया। जब वे अपने श्वसुर के घर पहुंची, उनको सास ‘रिछन 3 के लिए गाजेवजे के साथ उन्हें लेने आई 1 सर्वप्रथम वे उन्हें पूजा के लिए देखी के मन्दिर में ले गई। फिर वर से पुजवा कर, वर-के कपड़ों में पवित्र गाँठ लगाकर, उन्होंने मीरा से पूजा करने के लिए कईते हुए कहा : ‘हमारे कुल में ये देवो पूजी जाती हैं, इसी पूजा से सौभाग्य बढ़ा है, इसलिए उसके सौभाग्य के Iलए मेरे कहने के अनुसार पूजा करो।’ मीरा ने उत्तर दिया : ‘ने माथा तो कृष्ण के हाथ विक गया है, और किसी के आगे यह न झुकेगा ।' १ या में ता तथा मेड़तः, अजमेर प्रान्त में । यद्यपि ‘राजा' और राणासमगार्यवाची शब्द माने जाते हैं, तो भी यह स्पष्ट है कि यहाँ इन टो उपाधियों में से माना गया है, और पहल' दूसरी की अपेक्षा निम्न है। 3 नवविवाहित के चारों ओर एक दीपक घुमाने की रम।