पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३७१

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२१६] हिंदुई साहित्य का इतिहास संस्कृत श्लोक विप सदैव विप नहीं होता, और आमृत सदैव अमृत-क्योंकि ईश्वर की इच्छा से कभीकभी विप अमृत हो जाता है, और अमृत बिष । तत्पश्चात् शा ने यह जानने के लिए कि वे अब भी सधसंग करती हैं या नहीं मीरा के पीछे एक भेदिया लगा दिया । एक दिन कृष्ण ने मीरा को दर्शन दिए तो दिए द्वारा सूचना प्राप्त होने पर राजा तुरंत वहाँ गए । तलवार खींच, दरवाज़ा तोड़ कर वे अन्दर घुसे, किन्तु उन्होंने मीरा को बिल्कुल ग्र ले बैठे पाया । खिसिया कर वे अपने महल यापिस चले आए ! उसी भेदिए ने, जो दुष्ट होने के साथसाथ अशिष्ट था, एक दिन उनसे कहा : ‘स्वामी ने श्रापको अंगसंग करने की आज्ञा दी है ।' मीरा ने कहा : ‘कौन जानतहैं, तुमसे यह बात कहने की ग्राशा देने में स्वामी ने क्या विचार है ?’ तो भी उन्होंने संग-से तैयार की, और उस पर बैठ गई। तब उन्होंने भेदिए से यह बताने की प्रार्थना की कि क्या राणा ने तुमसे वास्तव में वह बात कहने की धाज्ञा दी थी, जो तुमने मुझसे कही है तब उस व्यक्कि के पुत्र का रंग उड़ गया, और मीरा के चरणों पर गिर कर बहू उनसे भक्ति-दान माँगने लगा उनके रूप की चर्चा सुन कर एक बार तानसेन के साथ सुल तान उन्हें देखने गया , और उनमें कृष्ण की छवि निहार कर श्र कर वह मुग्ध हो गया । तत्र तानसेन ने इस विषय पर एक पद सुनाया । तत्पश्चात् मीरा बाई वृन्दावन गई। इस स्थान के प्रधान गुसाई ने स्त्री की शकर न देखने की प्रतिज्ञा कर रखी थी । किन्तु मीरा वे पर तोसी जद में . इस प्रसिद्ध गवैये लेख देखिए