पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३८०

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मोहन लाल ( पंडित ) [ २२५ रितउसके कई संस्करण हैं , मेरे पास इलाहाबाद का, दूसरा है, १८४१, १८० आठभेजी पृष्ठ। 2.“The Life of the Amir DostMuhammad Khan of Kabul, with his political proceedings towards the English, Russian and Persian governments including the victory and disasters of the British army in Afganistanलंदन१८४६अठपेजी, २ जिल्द ( जकर--Zenker, Biblioth. orientalis-चिवतिोथेका ऑरिएंटालिस )। १०. ‘Travels in the PenjabAfganistan and Truquestan to Balk'h, Bukhara and fferat, and a visir to Grear Britain and Germany '; लंदन१४६, अठपेजी । ११भाग्बत’ (भागवत-अनु॰) मोखन ( मोहन-अनु०) लाल कृत कृष्णसंबंधी कथाएँ, बनारसजनरल कैटेलोंग ( टैंकर, बिबलिओ ऑरिएं हैं। वही : कलकत्ताजनरल कैटेलौंग ( जेंकर‘बिबलियंका आंॉरिएंटलिस' ) । १२. मोहन ने रिसाला जन ओ मुकाबला-—बीजगणित पर पुस्तक—के लिए अत्यन्त योग्यतापूर्वक सहयोग प्रदान कियादो भार्गों में; आगरा, १८५६, अठपेजी; प्रथम भाग १७२ पृष्ठों का, और दूसरा १५६ का । यह रचना, ऐसा प्रतीत होता है, ‘Lauds asy Algebraके आधार पर प्रधानतः संग्रहीत हुई है । १ हरदेव सिंह पर लेख देखिए फा०-१५