पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३८१

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हिंदुई साहित्य का इतिहास १३. श्रीलाल की सहकारिता में उन्होंने ‘रेखागणित-रेखाओं का हिसाब की रचना की है । मेरे पास हैंप्रथम भाग का तृतीय संस्करण; बनारस, १८५८, १६० अठपेजी पृ व : द्वितीय भाग का द्वितीय संस्करणछोटा चोपेजीआगरा१८५६, १५७ पृष्ठ; औौर तृतीय भाग का प्रथम संस्करण१३५ अठग्रेजी पृष्ठ । १४ उन्होंने ‘सार बर्णन सिद्धि परीक्षा ज्ञास पदार्थ विद्या काः बिज्ञान की वास्तविक शाखाओं के वैज्ञानिक परीक्षा की व्याख्या का सार-—शीर्षक इसर और हिन्दी की प्रथम पुस्तक की रचना की है , २८० अठपेजी पृष्ठ के आगरा१८६४, उत्तरपश्चिम प्रदेश के शिक्षाविभाग द्वारा प्रकाशित । मेरे विचार से ये चहीं मोहनलाल' हैं जो पहली जिद ( की-अनु० ) के १७१ तथा बाद के पृष्ठों में उल्लिखित पंडित अयोध्याअसद की सहकारिता में अजमेर से निकलने वाले हिन्दुस्तानी के साप्ताहिक पत्र ‘नैरख्वाहइ लाइक -- मनुष्यों के दोस्त -के संपादक थे । इसके अतिरिक्त ऐसा प्रतीत होता है कि यह हिन्दुस्तानी पत्र अजमेर से ही निकलने वाले जगलाभ चिन्तक - संसार की भलाई के लिए चिंता—शीर्षक हिंन्दी पत्र का रूपान्तर था। मोहनविजय ये मतग चरित्र' अर्थात् मानतुंग का इतिहास शीर्षक एक रचना के लेखक हैं । इस रचना में जैन मत ीर उसके सिद्धान्तों के विकास के संबंध में विचार किया गया है , तब भी उसकी श्रणाली में काल्पनिकता है, और जिस कथा का उसमें वर्णन किया गया है वह रोचकतापूर्ण है । संक्षेप में उसका विषय इस प्रकार है : १ किंतु इस पत्र के संपादक का नाम ‘सोहनलिखा प्रतीत होता है । २ मोहनविजय अर्थात् , मेरे विचार से, प्रलोभन पर विजय