पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३९८

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राम राड ( गुरु ) [ २४३ उस पर छोटेछोटे मंडे चढ़ाते हैं मार्च के महीने में इस गुरु का मेला लगता है । इस समय, उसके चारों ओर रहने वाले तमाम लोग उसके तीर्थ के लिए जाते हैं। लेखक ने इस महापुरुष के बारे में जो बातें दी हैं वे उसे १८४७ में गुरु राम की आध्यात्मिक गद्दी के उत्तराधिकारी से ज्ञात हुई थीं। उन्होंने उसे बताया कि राम राडबारह वर्ष की अवस्था में, लाहौर में थे, और अन्य अनेक विलकुल एक-सी छड़ियों में से, अपनी छड़ी पहिचान ली थी, जो उन्होंने मियाँ नूर' से ली थी, जहाँ उन्होंने इसी प्रकार के बहत्तर चमत्कार, अन्य व्यक्तियों के अतिरिक्त आलमगीर के सामने, दिखाए, यद्यपि आलमगीर के इतिहासों में उनका उल्लेख नहीं मिलता। हिन्दुओं का कहना है कि गुरु राम राड सका गए थे और उन्होंने हज में भाग लिया । हिन्दुओं का मत उन्हें हिन्दूमत के साथ ही साथ मुसलमानो मत मानने की आज्ञा देता है : नानक संप्रदाय बातों का भी ठीक ऐसा ही विचार है । उल्लिखित इमारत के चारों कोनों में गुरु की चार बियों की क़ों हैं । चारों ओर कुछ बें हैं जो कहा जाता है, इस स्थान पर उनके दैतून 5 फक देने से उत्पन्न हो गए थे । इमारत की पूर्व की ओर एक पत्थर है जिस पर गुरु की मृत्युतिथि खुदी हुई है । करीम के आधार पर मैंने जिस व्यक्ति का उल्लेख किया । है। वह निस्संदेह यही है जिसे, ‘पोथी हिन्दी अ राम राय' - राम 1 अर्थात् , प्रत्यक्षत, नान-संप्रदाय के आठवें गुरु, जिनके वे ( राम राड ) उत्तरधकारी हुए । २ यहाँ यह बता देना उचित होगा कि नूनजिसे हिन दतवन' से र मुसलमान ‘भसवाक' ( Miswk ) कहते हैं, एक विशेष मुलायम पेड़ की लकड़ी से बनाई जाती है।