पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राम सरूप। [ २४५ आगराआदि । मेरे पास उसके कलकत्ते के उर्दू संस्करण की एक प्रति है, १८५०, ३४ अपेजी , दस हजार प्रतियाँ मुद्रित; ३. ‘सापतोल ’ - तोलना और नापमा’ (क्षेत्र विज्ञान—मैन्सुरेशन के प्राथमिक सिद्धान्त), आठपेजी। इन पुस्तकों के, उर्दू और हिन्दी में, अनेक संस्करण हो चुके हैं, और जो अँगरेजी भारत में उच्च कोटि की पुस्तकें मानी जाती हैं, अन्य के अतिरिक्त एक उर्दू में, आगरे से १८२८चित्रों सहित, १२ अठपेजी पृष्ठ। ४. ‘पटवारी या पटवारियों की किताब, या पुस्त' ( जिसके अनुसार यह पुस्तक उर्दू या हिन्दी में लिखी गई। है ) पटवारियों के लिए पुस्तक-अत्न चार भागों में, उत्तरपश्चिम प्रदेश के देशी लोगों के लाभार्थगाँव के पटवारियों के लिए पाठ्यक्रम ।’ उसका आगरे का १८४६ का एक उर्दू संस्करण है, ८० अठपेजी पृष्ठएक दूसरा१८५३१८५५ का, चित्रों सहित; एक लाहौर से. १८६३,५४ छोटे चौपेजी पृष्ठआदि । राम सरूप मीर बली मुहम्मदजो सम्भवतः हिन्दू से मुसलमान हुए, की हिन्दी में लिखित दो कविताओं के संपादक हैं; पहली का शीर्षक है ‘श्री कृष्ण जी की जन लीला’,कृष्ण के जन्म-समय की लीला—फ़तहगढ़, १८८१३ ; दूसरी ‘बालपन बाँसुरी लीला ( कृष्ण की ) बंशी की बचपन की लीला, वहीं से, १४ पृष्ठ । १ इस प्रकार की एक उर्दू पुस्तक का शीर्षक है ‘मस्बाह उलूमताहत' । २ इस विषय पर दे० आगरा गवर्नमेंट गजट, १ जून, १८६५ का अंक । ३ क्या यह ‘वारियों का काग बनाने को रांत' रचना हो तो नहीं है, जिसके अनेक संस्करण हो चुके है । ४ ‘पटवारो प्रोट्रैक्टर' शोरैंक के अन्तर्गत उर्दू में एक पुस्तिका आगरे से प्रकाशित हुई है । भा० ‘स्म का ’