पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०२

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रूप र सनातन [ २४७ रूप ोर सनातन दो भाई थे, जो पहले मुसल मान और गौड़ के सुलतान के मंत्री थे। उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार किया और सुधारक चैतन्य के अनेक शिष्य में से अत्यन्त प्रसिद्ध हो गए । उन दोनों ने, विभिन्न सुधार वादी संप्रदायों के बैणवों की बोली ( dialect ) हिन्दी में, एक एक अन्य '—पुस्तक (धार्मिक दर्शन)--की रचना की। इस के अति- रिक्त वे अन्य अनेक रचनाओं के रचयिता हैं । ‘भक्तमालमें उनके संबंध में इस प्रकार का लेख मिलता है : प संसार स्वाद सुख बात ज्यों हुई औी रूप सनातन याग दियो । गौड़ देश बंगाल ढते सघ हो अधिकारी । ” हय गय भवन भंडार विभष भूभुज आंसू हारी। यह सुख अनित्य विचार ास वृन्दावन कीनो। यथा लाभ संतोष कुंज कर बामन दीनों। ब्रज भूमि रहस्य राधा कृष्ण भक्त तोष उद्धार कियो । संसार स्वाद सुछ बात ज्यों दृहु श्री रूथ सनातन स्याग दिया ॥ ८e। टीका रूप और सनातन ने अपनी इच्छात्रों पर विजय प्राप्त करती थी । उन्होंने बंगाल देश का राज्य छोड़ दिया, जैसा कि नाभा जी ने उपर्युक छन्द में कहा है । जब वे वृन्दाशन गएतो शुकदेव द्वारा ‘भागवत’ में बर्णित ति के आनुसार, उन्होंने कृष्ण-लीला से संबंधित सुरक्षित रखे गए स्थानों के दर्शन किए। १ इस व्यक्ति के संबंध में, देखिएभोलानाथ चंद्र : ‘दि ट्रैबिट्स ऑव ए हिन् , पहली जि०, ३२ तथा बाद के पृष्ठ। ३ ‘एशियाटिक रिसचेंज, जि० १६, १० १२० और १२१ 3 विलसन : ‘शयाट्रिक रिसों', जि० १६, ७० ११४ । ई यह छपय भतमालके १८८३ के लखनऊ वाले संस्करण से लिया गया है।—अनु’ 2,