पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२४८]
हिंदुई साहित्य का इतिहास


भागवत और आध्यात्मिक बातों के रसिकों को सुखदाई रीति के अनुसार उन्होंने उपासना की। फिर प्रभु की आज्ञा पाकर वृन्दावन के कोतवाल, गोपेश्वर[१] महादेव, उनके पास आकर कहने लगे; 'क्योंकि तुम वृन्दावन आए हो, प्रभु की स्तुति में कुछ लिखो। अन्यथा मैं तुम्हें यहाँ रहने को आज्ञा नहीं दूँगा।' यह सुनकर वे डर गए और उन दोनों ने एक-एक ग्रंथ की रचना की।

एक बार सम्राट् अकबर वृन्दावन में उनकी कुटी में उनके दर्शन करने गए, और उनसे कहा : 'यदि आपकी इच्छा हो, तो मैं आपके लिए एक मकान बनवा दूँ।' उन्होंने उससे कहा : 'अपनी आँखें बन्द करलो' उसने ऐसा ही किया, और देखा कि उनका निवास-स्थान बहुमूल्य रत्नों से जड़ा हुआ है। रूप और सनानत ने उससे कहा : 'यदि तुम अपने राज्य का सब धन भी लगा दो, तो ऐसी कुटी नहीं बनवा सकते।'

रूप ने अपने 'ग्रन्थ' मेंं राधा के बालों की समता साँपिन से की थी।[२] सनातन ने यह अंश पढ़ा, तो छंद उन्हें भद्दे प्रतीत हुए, और उन्होंने काव्य-रीति के अनुसार संदेह दूर किया। किन्तु एक बार स्वयं राधा ने, राधासरतीर लटक कर, अपने फैले हुए बालों को व्याल रूप प्रदान किया।

सनातन ने उसे देख चिल्लाकर ब्रजवासियों से कहा : 'दौड़ो, साँप इस बच्चे को डसने और निगलने वाला है।' लोग आए, और


  1. शाब्दिक अर्थ, 'गोपी का प्रधान (स्वामी)' यह कृष्ण का एक नाम है। यहाँ पर यह शब्द या तो एक आदरसूचक उपाधि है, या एक व्यक्तिवाचक नाम, यद्यपि यहाँ यह बता देना यथेष्ट होगा कि एक ही व्यक्ति शिव और कृष्ण के नाम एक साथ ही धारण कर सकता है।
  2. इस तुलना का बहुत अधिक व्यवहार किया जाता है। उसका एक उदाहरण मेरे 'बकावली' के संक्षिप्त अनुवाद में देखिए ('शर्मा एशियातीक', वर्ष १८३५, जि॰ १६, पृ॰ ३५८; अथवा 'प्रेम-सिद्धांत' में, पृ॰ ११२।