पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रूपमती f २४६ देखा; किन्तु उन्हें न तो बच्चा दिखाई दिया औौर न साँप । तब सना तन ने समझा कि इस विषय से सम्बन्धित रू१ के छन्दों में, समय ही सन्देह करने से स्वयं राधा ने अपने बालों को सचमुच सर्ष के रूप में प्रदर्शित किया है । वे अपने अनुज के पास जाए, औौर टनकी प्रदक्षिणा करते हुए कहा : ‘मेरे दोष लगाने का फल यह हुआा, कि जिस रूप की नैने वालोचना की थी उसी रूप में राधा ने अपने दर्शन दिए । औ रूपमती का जन्म सांरगपूर में हुआ था, जो उस समय के स्वतंत्र राज्य, तथा अफ़ग़ान सरदार बाज बहादुर, जिसकी वे प्रेयसी थीं, द्वारा शासितमालवा में है । जब अकबर ने अपने को इस प्रान्त का सम्राट घोषित किया, तो बाज़ का हरम विजेताओं के हाथ में पड़ गया, तथा कहा जाता है कि बाज़ के प्रति सच्ची रहने के लिए रूपमती ने अपने को मृत्यु को सौंप दिया । अब भी मालवा में गाए जाने बाते भजनों की वे रचयिता हैं: ये भजन लिखित रूप में हैं, और भारतवर्ष की प्रसिद्ध नारियों पर एक रोचक लेख के लेखक ने उनमें से कई उद्धृत किए हैं । रंदास या राउ-दास’ ये मान्य व्यक्ति, जो अपने कामों में चमड़े का प्रयोग करने , चमारों की अपवित्र समझी जाने वाली जाति के थे, रामानंद के शिष्य और अपने नाम के आधार पर -दासी कहे जाने वाले १ भा० ‘सौंदर्य का श्रदर्श' २ ‘कलकत्ता रिव्यू, अप्रैल१८६६, ७ ११ ३ संस्कृत उच्चारण के अनुसार ‘वि दास, -सूर्य का दास - के स्थान पर ।