पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०६

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रैदास या राजदाल f २५१ से बाहर न जा सका , तब उसने बनिए का सीधा स्वीकार करउसे देवता को अर्पित किया । प्रसाद ग्रहण करने के बाद जत्र रामानन्द ने चुनाथ ( राम ) पर ध्यान लगाया, तो वे ध्यान केन्द्रित न कर सके । तब उन्होंने अपने शिष्य से पूछा कि उस दिन भगवान का भोग किसने लगाया था । इस पर उसने उत्तर दिया वह बनिए से प्राप्त हुआा था । तभ स्वामी ने ये शब्द सुनाए ‘अरे व मार ! इस शाप के कारण रैदास स्यु को प्रात हुए, और फिर से चमारों की जाति के व्यक्ति के घर जन्म लिया ।’ क्योंकि वे चपनी माता का दूध नहीं पीते थे, रामानन्द को एक नाकाशवाणी सुनाई थी । एक भागवत ने उनसे कहा : उस चमार के घर जहाँ रैदास ने नवीन जन्म धारण किया है जाओ ।' संत उठे और बताए हुए घर की ओोर चले । रैदास के मातापिता, दुःखी होने के कारण उत्सुकतापूर्वक दौड़े, और सन्त के चरणों पर गिर पड़े । रामानन्द रैदास के कान में दीक्षा मंत्र दे भी न थाए थे, कि उन्होंने अपनी माता का दूध पीना प्रारंभ कर दिया । जब वे बड़े हुए, दो जूतों का काम करने ल गे । जब साधु उनसे कुछ माँगने आते , तो वे दे डालते थे ; और शाम को अपने पास बचे दो-चार पैसे अपने मातापिता को जाकर दे देते थे। । उनकी इस बात पर वे नाराज होते थे, ऑौर उन्हें अपने घर से निकाल दिया । भगवान उनसे एक वैश्व के रूप में मिलने ग्राएं , उन्होंने उन्हें इस पथर ( Philosophers stone ) का एक टुकड़ा दिया, और उससे लोहे को स्वर्ण में परिवर्तित करने की विधि बताई । किन्तु रैदल ने कहा : ‘मेरा धन तो राम हैं । ' सूरदास का पद भक्तों के लिए हरि का नाम सबसे बड़ा धन है , व या अवैध