पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास चास' यमको अगम त्रास तुम्ह रे भजन चिन नमत फि॥ माया मोह विषय रस लंपट यह दुस्तर दूर त। तुम्हारे नाम विश्वास छाड़िये धान ग्राश संसारी धर्भ में मन न धीरे। रैदास दास की सेवा मानद् देव पतितपावन नामआाज प्रगट की ॥ तब भगवान् पहले की भाँति है, और संत की गोद में जा बैठे । जब रानी ने रैदास से घिदा ली तो उन्होंने किसी ऐसी बात के बारे में जिसके संबंध में वह जानना चाहती हो लिखने के लिए कहा। जन बह अपने देश पहुँची तो ब्राह्मणों ने अनादर किया, चमार की शिष्या हो जाने के कारण उसकी निंदा की । इससे रानी को अत्यन्त चिन्ता हुई, और उसने छपने गुरु को एक पत्र लिखा जिस पर वे श्राएं । रानी ने अत्यन्त आदर के साथ उनका स्वागत किया, और उन्हें महल में ले गई । सत्र ब्राह्मण श्राए; रानी ने उन्हें सीधा दिया । अपनी-अपनी विधि के अनुसार रसोई पकाकर, वे खाने ; किन्तु दर दो ब्राह्मणों के बीच एक रैदस दिखाई दिए । ब्राह्माणों ने दो-चार बार यह आश्चर्य देखा तो उन्हें रैदास के प्रति भक्ति हुई, औौर उनके चरणों पर गिर पड़े । तत्र सन्त ने अपना सीना खोला औौर जाति का निश्चित चिन्ह यज्ञोपवीत उन्हें दिखाया।' लछमन या लक्ष्मण गोकुलचंद द्वारा प्रकाशितऔर बनारस में, पंडित तमन्ना लाल द्वारा मुद्रित, रघुनाथ कृत ‘शतक' के अनुकरण परदोह के एक शतक ’ ( १२६ ) के रचयिता हैं, १४२३ संवत् ( १८६८ ), २०-२० पंक्तियों के ३३ पृष्ठ । - , ' पुनर्जन्म का ऑोर संकेत। २ मूल छाय और आय आयो...’ य8 पद समालके १८८३ के संस्करण ( मुंशI नवलकिशोर प्रेस, लश्नन ) से लिए गए हैं। -अनु० ३ भा: राम के भाई का नाम'