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हिंदुई साहित्य का इतिहास

शताब्दी के अंत या चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ में कुछ कविताएँ मिलती हैं। किन्तु इस साहित्य को प्रकाश में लाने वाले प्रसिद्ध कवियों के लिए अठारहवीं शताब्दी पर आना पड़ेगा : सौदा, मीर, हसन। दक्खिनी लेखकों की परंपरा सोलहवीं शताब्दी से प्रारंभ होती है, और अखण्ड रूप में हम लोगों के समय तक आती है। हिन्दी साहित्य की यह शाखा, जो अँगरेजों द्वारा नितान्त उपेक्षित रही है, मुझे विविधि प्रकार की रचनाओं की दृष्टि से अधिक समृद्ध प्रतीत होती है। मेरे ग्रन्थ में उसे एक उच्च स्थान प्राप्त हुआ है।

मेरे ग्रन्थ की दो जिल्दें हैं। पहली, जिसे मैं इस समय प्रकाशित कर रहा हूँ, में हैं : १. विवरण जो लगभग हिन्दी-लेखकों से सम्बन्धित है; २. परिशिष्ट में अज्ञात लेखकों और यूरोपियन लेखकों की रचनाओं से सम्बन्धित संक्षिप्त सूचनाएँ हैं[१]; ३. अंत में, एक लेखकों की, और दूसरी रचनाओं की, दो अनुक्रमणिकाएँ हैं, जो इस प्रकार की रचना में अनिवार्य हैं। खोज-कार्य को और अधिक सरल बनाने के लिए, मैंने इसी एक जिल्द में जीवनी और ग्रन्थ-सम्बन्धी सभी अंश रख दिए हैं, जिससे यह पूर्ण हो गई है; इस जिल्द का और आकार न बढ़ाने तथा लेखों के अनुपात में समानता रखने के लिए, मैंने केवल अलभ्य और छोटे उद्धरण दिए हैं। अत्यधिक बड़े अंश और रूपरेखाएँ मैंने दूसरी जिल्द के लिए रख छोड़ी हैं। वह वास्तव में संग्रह भाग होगा। उसमें होंगे : १. प्रधान हिन्दी-रचनाओं के उद्धरण और रूपरेखाएँ; २. हिन्दुस्तानी पर प्रकाशित प्रारंभिक रचनाओं की सूची; ३. जीवनी और ग्रन्थों में परिवर्धन शीर्षक के अंतर्गत,


  1. जिन रचनाओं की ओर मैंने संकेत किया है उनके अतिरिक्त, अन्य अनेक हैं जो मुझे 'किताब' या 'पोथी' (पुस्तक); 'क़िस्सा', 'हिकायत' या 'नक्ल' (कथा); 'मसनवी', 'क़सीदा, 'रिसाला-मन्‌ज़्‌मा' (कविता) आदि अनिश्चित शीर्षकों के उल्लेख से, इधर-उधर मिली हैं––पूर्व की ख़राब परंपरा के अनुसार न पढ़े जाने वाले शीर्षकों तथा बिना शीर्षक की रचनाओं को छोड़ कर।