पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४१२

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लल्लू ( श्री लल्लू जी लाल कवि ) [ २५७ मिश्रण बिना ।' सर्वप्रथम यह रचना व्यासदेव कृत भागवत’ के दशम स्कंध के आधार पर चतुर्भज मिश्र द्वारा ब्रजभाषा दोहा चौपाई में की गई थी । हमरे लेखक ने इसी त्र-भाषा पाठ का बीच-बीच में पत्रों (श्लोकों ’ से मिश्रित हिन्दी गद्य में रूपान्तर किया हैं, क्योंकि मूल ज-भाषा का मुझे ज्ञान नहीं , मैं ठीक ठीक नहीं कह सकता कि लल्लू जी का अनुवाद पाठ से कितना भिन्न है। इतना तो मैं कह सकता हूँ कि उसका' न शुद्ध हिन्दी में लिखा गया है, यद्यपि उसमें अधिकांश पत्रों का प्राचीन या -भौखा रूप सुरक्षित रखा गया है । मैं उससे यह निष्कर्ष निकालता हूं कि संभवतः लल्लू जी गय को सुधारने और अत्यधिक कठिन पश्चों को निकाल देने से सन्तुष्ट हुए हैं । यह रचना, जिसके नायक कृष्ण हैं होमर या उनके अनुकरण पर लिखी गई रचनाओं की भाँति महाकाव्य नहीं है, और न कृष्ण के बाद का प्रामाणिक इतिहास ही । इसमें तो एक प्रकार की विभिन्न क्रीड़ाएँ हैं, जिनका साम्य कहीं और नहीं मिलता, और जो हमेशा थोड़ाबहुत कृष्ण से संग धत रहती हैं । उनका बन करने में 'महाभारत' ‘सिंहासन बतीसी, ‘तो जामा ’ ‘सहन रजनी आदि प्रकार की रचनाओं में एशियावासियों द्वारा परंपरापालन के आनुकरण पर सामान्य नियम ग्रहण किया गया है । यद्यपि यह कहा जाता है कि प्रेम सागर’ का आधार भागवत पुराण' का दशम स्कंध है, किन्तु यह जान लेना अच्छा होगा कि इस प्रकार की कथाएँ, जो भारतीय लेखकों को बहुत अच्छी लगती हैं, अन्य अनेक महत्वपूर्ण रचनाओं में भी पाई जाती हैं, विशेषत मैं वास्तविक शब्द : ‘यामिनी भाप छोड़' अर्थात् ( फ़ारसी मिश्रित ) अरबोंप्रेम सागर की भूमिका, पृ’ २ फा० - १७