पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४१३

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हिंदुई साहित्य का इतिहास विष्णु पुराण, ‘हरिवंश’ तथा अन्य अनेक रचनाओं में प्रेम सागरकी कथा इन्हीं कथाओं के समीप है, कहीं अधिक विकसित कहीं अधिक संक्षेप में, किन्तु व्याकरण के रूपों, समानार्थवाची शों और गुणवाचक बिशेपणों से समृद्ध प्राचीन संस्कृत काय की चपेक्षा अधिक सूक्ष्म अभिव्यंजनाओं और सरल बायों से समन्वित भारतीय शैली के काथ से सर्वत्र स्पंदित । साथ ही जिन तीन ग्रंथों के सम्बन्ध में मैं संकेत कर चुका हूं उन्हें पढ़ने के बादप्रेम सागरकी कथा आकर्षक और चक, विशेषतधार्मिक और दार्शनिक, साहित्यिक और पौराणिक दृष्टिकोण के अंतर्गत लिखी गईंप्रतोत होती है । मुझे उसमें जो बात प्रमुख रूप से ज्ञात होती है वह ईसा मसीह ( क्राइस्ट ) और कृष्ण के जीवन की बहुत-सी मिलती जुलती बातें हैं, संयोग से कृष्ण और क्राइस्ट के नाम भी आपस म बहुतकुछ समान हैं ' और साथ ही धर्मपुस्तक ( Gospe!) और प्रेम सागर’ के सिद्धान्त भी, प्रधानत: अवतार में विश्वास संबंधित क्या यह समानता संयोगवश हैं ?— क्या यह इस अर्थ में स्वाभाविक है कि समस्त जातियों के धर्मिक व्यक्तियों में एक से विचार जन्म लेते हैं१ “श्री दफेमो द सपा ( Aggnor de Gasparin ) का कथन है कि मनुष्य के हृदय में उत्पन्न समान कारणों ने विभिन्न देशों में समान बातें उत्पन्न की हैं । मैं इसमें विश्वास नहीं रखता और यह निश्चित है कि जिस साम्य का मैंने उल्लेख किया है वह वास्तव में ईसाई मत के प्रारंभिक वर्षों में भारत में लाई गई स्वयं ईसा मसीह की कथा का प्रतिबिंब - पाक के साथ - से उल - १ बस्तव में वे केवल एक से प्रतीत होते हैं , क्योंकि गुप्त की दृष्टि से दोनों शब्द बिल्कुल भिन्न है। ३ वास्तव में वेसा तीत होता है कि कृष्ण वेदान्त दर्शन के साकार रूप हों।