. लल्लू ( श्री लल्लू जी लाल कवि) [ २५ है ।१ टी० मौरिस और भोलानाथ चन्द्र के साथ मुझे इस अंतिम कारण को ग्रहण करने में कोई संकोच नहीं है । वैष्णवों या विष्णु के आनुगामियों का संप्रदाय, जिसके लिए श्रेम सागरलिखा गया है, शैवों या शिव के अनुगामियों के संग्र दाय के, जो साथ में हृदयपरिवर्तन के बिना शारीरिक तप में अपनी ईश्वरभक्ति समझते हैं, स्थान पर एक सुधार है । बस्तुत: ये केवल प्रायश्चित की यातनाओं में विश्वास रखते हैं। प्रायश्चित शब्द का अर्थ उनके लिए हम ईसाइयों में प्रचलित अर्थ से बिल्कुल भिन्न है । ईसाइयों में यह एक ग्रीक शब्द का अनुवाद है जिसका अर्थ है परिवर्तन, और जो धर्मपुतक के नए नियम (New Testt ment) में हृदय के सच्चे प्रायश्चित के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । । विष्णु के अंतिम अवतार कृष्ण की भक्ति, जो शिव की भक्ति से बिल्कुल भिन्न है, आध्यात्मिक है । इस धर्म में जो प्रणाम किया जाता है वह ऐसा है जो केवल उनके काँ, उनकी दुनिया के मतों को पुनरुजीवित करता हैं । शैवों का सिद्धान्त, ो वैष्णवों की
- ईसाई विरोधी लेखकों ने एक और कल्पना की है; बद्र साई मत पर भारत का
अनुकरण करने का दोप लगाने में है । टो० मौरिस ने ‘Brahmanical Fraud detected' में यह कल्पना दूर करने का कष्ट किया है, जिससे स.ई मत के प्रति केवल अनुचित मृणा दूर हो सकता है। संत श्री बर्ड ने भी एक हैनक पत्र में 'The Bible in India' शांर्पक मेहंदी रचना का सफलता पूर्वक खण्डन किया है, जिसमें यह बात हाल ही में फिर से उठाई गई है। ३ ऊपर के नोट में उल्लिखित रचना में । 3 ‘दि ट्रेविल्स अंव : हिन्दू, विथ न इन्ट्रोडक्शन बई जे० लबॉय ( Tolboys ) होलर ,जि० २, प्० २५ यदि हम आंतरिक तप के साथसाथ वा प्रदर्शन रखेंतो इससे हमें प्रेरित करने बाली भावनाओं के प्रमाण दें, और अंत में प्रायः पाप के कारण उत्पन्न क्षणिक संताप की शां.त के लिए ईसा मसीह के बलिदान के साथ योग स्थापित हो जाता है; किन्तु क्षम जानते हैं कि अकेले बाब प्रदर्शन में कोई सहस का काम नहीं। ट