पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४१६

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लल्लू ( श्री लल्लू जी लाल कधि ) [ २६१ भारतवासियों के अनुसार अन्य अवतारों में विष्णु ने अपनी दिब्यता का केवल एक अंश ही प्रकट किया था 1 यह ( कृष्ण ) अवतार पूर्ण था : ये सशरीर विष्णु ही थे। किन्तु कृष्ण कथा की ईसा मसीह से तुलना में वही कहा जा सकता है जो फ तेन ( Fontaces ) ने जरान के संबंध में कहा है, कि बाइबिल ही एक सहन रजनी के रूप में परिवर्तित हुआ। इस अनुमानित अभाव के कारण ही संभवतइस ग्रंथ में कहींकहीं अस्पष्टता मिलती है । प्रेम सागर’ का रूपान्तर और छपाई कलकत्ते में, माचिंस बेतेजली के शासनान्तर्गत, और १८६० संवत् ( १८०४ ईव्स सन् ) में डॉक्टर गिलक्राइस्ट की अध्यक्षता में शुरू हुई थी, किन्तु इस स्कॉटलैंडनिवासी प्राच्यविद्याविशारद के चले जाने से छपाई का काम रुक गया। बहुत वाद को लॉर्ड मिन्टो के शासनकाल में जॉन विलियस टेलर के आदेशानुसार, और डॉ० डब्ल्यू हन्टर की सहायता से उसे फिर हाथ में लिया गया हैं और रचना और छपाई दोनों ही १८६६ ( १८१० ) में, अनाहैम लौकेट की अध्यक्षता में समाप्त हुई । बहू २५० चॉपेजी भु ओं की एक बड़ी जिल्द है । मैं नहीं कह सकता यदि यह बही रचना है जो, ‘श्री भागवतशीर्षक, शुद्ध हिन्दी में, प्रीमीटी ओरिएंटालीस’ (Primitiae Orientales) जिल्द ३, ४० ४११ में प्रेस भेजी गई घोषित की गई है ; अथया हो सकता है वह चतुर्भुज मिश्र की मूल रचना हो । जिस १८१० के संस्करण का मैंने यहाँ उल्लेख किया है उसके अतिरिक्त कई अन्य संस्करण हैं जिनमें उसके अध्यायों की संस्कृत पुष्पिकाएँ हटा कर उनके स्थान पर अध्यायों की संख्या प्रकट करने वाले अँगरेज, शीर्षक रख दिए गए हैं । यह जो १२५ में छपा है वहूं पहले की अपेक्षा अधिक छोटे अक्षरों में है । । आकार तब भी बड़ा चौपेजी है । मेरे विचार से अंतिम १८३१ का है, छोटे चौपेजी आकार का,