पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

7 १ .3 3 लल्लू ( श्री लालू जी लाल कवि ) [ २६३ है, जिसके साथ पाठ और शब्दकोष भी दिया गया है । लल्लू रचयिता भी है । : २. ‘लतायफ्र-इ-हिन्दी , या हिन्दुस्तानी लतीफों के, उर्दू और हिन्दुई या त्रजभाखा में सौ न्यूनाधिक रोचक छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह में यह रचना कलकत्ते से १८१० में, ‘दि न्यू साइक्लोपोडिया हिन्दुस्तानिका, एट्रॉीटा' ( हिन्दुस्तानी आदि का नया विश्वकोष ) शीर्षक के अन्तर्गत छपी है; कारमाइकेल स्मिथ (Carmichael Smyth ) ने उसका एक बड़ा अंश उसके वास्तविक शीर्षक ‘लतायफ-इ हिंद' २ के अंतर्गत लंदन से फिर झापा है के अंत में यह संग्रह कुछ पहले उद्धृत हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स' का अंश बना है । ३. राजनीति, या राज्य की कला के , ( नारायण पंडित आत ) संस्कृत से हिंदुई या ब्रजभाखा में अनूदित रचना । यह हिन्दुओं के नैतिक और नागरिक एवं सैनिक राजनीति को हृदयंगम कराने के उपयुक्त कहानियों का संग्रह है और जो लल्लू द्वारा हमारे लिए पुनरुज्जीवित किए गए पं० श्री नारायण द्वारा रचित, हितोपदेश’ के सच्चे अनुवाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । उसके बाद पंचतंत्र का चौथा अध्याय है । इस रचना के अनेक संस्करण हैं । सर्वप्रथम तो १८०, कलक, का है, २५४ बड़े अठपेजी पृष्ठ । एक दूसरा भी कलकत्ते का है, १८२७जो भारत १‘लतायफ- दिशा’ ( फ़ारस लिपि से ) २ लंदन, १८११, अठखेजी । इस संस्करण को बिद नूर के नवाब के मंत्रो, मोर आफ़जल अलों ने दुहराया है, और जो बही है जिससे मैंने एक पत्र अपने ‘Rudiments de la langue hindoustanie' ( हिन्दुस्तानी भापा के प्राथमिक सिद्धान्त ) के प्रथम संस्करण के परिशिष्ट में उद्धृत किया है, पृ० ३६ । उसका १८४० का एक दूसरा अठपेज ही संस्करण है जिसके अंत में मनेर तक्नों की एक कविता शुअलाइ इश्क' है। ३ रराजन ति