पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४२०

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लल्लू ( भी लल्लू जी लाल कवि ) [ २६५ ६. मसदिरइ भाखा' ' अर्थात् भाखा हिन्दी) की कत्र्ताकारक संझाएँ, गद्य में की गई तथा नागरी अक्षरों में लिखित व्याकरण संबंधी रचना । उसकी एक प्रति कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के मूल्यवान पुस्तकालय में है । ७. विचव दर्पण’-—ज्ञान का दर्पण 1 ‘जनरल तौग' के अनुसार इस रचना में रामकथा और भारतवासियों में प्रचलित कला और विज्ञान का संक्षिप्त सार है ।२ ८ ‘माधो बिलास'-माधो (कृष्ण) के आनंद, संस्कृत से हिन्दी में अनूदित काव्य, आगरा१८४३, अठपेजी में और अँगरेज़ी में DA taje of Madho and Sulochana done into Hindi शीर्षक सहितआगरे से ही , १८६४ में, अठखेजी। साथ ही लल्लू ने निम्नलिखित रचनाओं के रूपान्तर में सहायता की, देखिए : १.सिंहासन बत्तीसी’४ अर्थात् सिंहासन की बत्तीस कहानियाँ। यह रचना, जो सर्वप्रथम संस्कृत में लिखी गई थी, फिर ब्रजभाखा में अनूदित हुई, डॉक्टर गिलक्राइस्ट के कहने से मिर्जा काजिम अली जवाँ की सहायता से लल्लू द्वारा १८०१ में उर्दू, किन्तु देश नागरी अक्षरोंमें की गई । वह १८०५ में छपी । अंत में चमन ने उसे उर्दू पद्यय में कर १८६४ में कानपुर से प्रकाशित किया । १ मसादिर भाखा ( फारसी लिपि से ) २ मिर्जायी पर लेख देखिए। 3 टैंकर ( Zernker ), बिबलियेका ओरिएंटालिस ’ a( Bibliotheca Orientalis )' जि० २, पृ० ३०५ । ‘रागजख्पद्म’ में भी इस ग्रंथ का उल्लेख है। ४ सिंहासन बत्तीसी। इस रचना के और भी हिंदी रूपान्तर है। मेरे निज संग्रह में, अन्य के अतिरंक, एक अठखेजी और फारसी अदंरों में है । उसका शीर्षक है‘पोथी सिंहासन बतौसी'।