पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४२२

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लल्लू ( श्र लल्लू जी लाल कवि ) [ २६७ अप्रयुक्त ब्रज-भाखा शब्द निकालने का कार्य तारिणी चरण मित्र को सौंपा । इस रचना के अनेक संस्करण हैं : एक कलकते से, १८०६ ; आगरे से, १८४३ ; इन्दार से, १८४६ । कैप्टेन होलिंग्स (Hollings) ने १८४८ में कड़कते से उसका एक पूरा गरेजी अनुवाद प्रका शित किया है, अठपे जो, और श्री लाँसरो ( Lancereau ) ने १८५१ के ‘ जून एसियतीक' ( Journal Asiatique ) में उसका विश्लेषण दिया है ! स्वर्गीय वी० बाफर ने उसका आन्सर्पोक्ति अनुबाद और नोट्स सहित एक बड़ा अठपेजी संस्करण १८५५ में लंदन से प्रकाशित क्रि या के अथक परिश्रमी डो० फ़ोर्स ने कोष सहित एक संस्करण १८५७ में प्रकाशित किया हैं और संपादक बी० ईस्टवि ( Eascrick ) ने अंतत्ति सहित ही एक दूसरा अनुवाद १८५५ में किया । लखनऊ के नवलकिशोर के जनवरी १८६७ के सूचीषत्र में उसके एक पद्यात्मक रूपान्तर का उल्लेख है ; और ‘वेताल पंच शित्ति' शीर्षक के अंतर्गत ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने हिन्दी से बंगला में अनुवाद किया है । ।' ३. ‘माधोनल२२ का किस्सा जिसका रूपान्तर करने में उन्होंने फिर मजहर अली खाँ विला की सहायता की। ४. शकुन्तला४ का क्रिसा, जिसका रूपान्सर करने में उन्होंने काजिम अली जवाँ को सहयोग प्रदान किया ।" २ जे० लौंग, डेस्क्रिप्टिव कैलौग व बंगालो वक्र्स’ पृ० ७८ २ क़िस्सा माधोनल ( फ़ारस लि.प से ) 3 शकुंतला नाटक ( फ़ारसी लिपि से ) ४ मेरा विश्वास है कि प्रायः इस चयता का लाल, जिसका मैं बहुत पहले उल्लेख कर चुका हूँ, के साथ भ्रम हो जाता है ।