पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४२८

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लाल जीदास [ २७३ क्या यह व्रजबासीदाल वाले लेख में उल्लिखित रचना ही तो शायद नहीं है और यह ब्रजवासीदास नाम लालच का दूसरी नाम हो, और लालच फिर उसका तखल्लुस या कवि-उपनाम हो ? जो कुछ हो, लालच ने अपनी रचना का निर्माण १५२७ विक्रम संवत् (१४७१) में किया, और इसलिए वे पन्द्रहवीं शताब्दी के लगभग मध्य में जीवित थे। श्री पैवी (Th. Pavie ) ने १८५२ में उसका पूर्ण अनुवाद क्रियाजिसके साथ उन्होंने एक रोचक्र भूमिका दी है। उनकी रचना का शीर्षक है ‘कृष्ण और उनके सिद्धान्त। अंत में, ‘भागवत’ के अनेक हिन्दी रूपान्तर हैं । इनमें से हिन्दी पत्र में एक 'भागवत' का उल्लेख BibliothSprenger’ के सूचीपत्र मेंसंख्या १७२३ के अंतर्गतहुआ है, ५५२ अठपेजी पृष्ठों का हस्तलिखित प्रन्थ ! लाल जी दास’ ( लाला ) ने विभिन्न रूपांन्तरों के पाठ देखने के बाद ‘भक्तमाल' का उर्दू में अनुवाद किया है । ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी रचना १२५८ हिजरी ( १८४२ ) में प्रकाशित हुई ।२ वज़ीर अली( मीर औौर मुंशी ) दिल्ली के कॉलेज में अँगरेजी के प्रोफेसर, रचयिता हैं। : १. शिवप्रसाद की सह्यकारिता में गोल्डस्मिथ की पुस्तक का ‘तर्जुमाइ तारोवइ यूनान’ के नाम से अनुवाद, १८४६ ). . के - - - - - ' । 3 भा० ‘कृष्ण का दा' २ मेरठ का अखबार-व आलम्, २१ मार्च१८६७ का अंत ३ अ० ‘अली का वज़ोर’ फा०-१८