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हिंदुई साहित्य का इतिहास


'मैं पारखियों के सामने अपनी रचना रखता हूँ, वैसे ही जैसे जौहरी से परखवाने के लिए रत्न।[१]'

वही है मेरे हर्फ़ का क़द्रदाँ
कि जौहर न बूझे बजुज़ जौहरी

(फ़ारसी लिपि से)

 

  1. मेरे संस्करण का पृ॰ १२२